Sunday, 19 June 2016

Happy Father's Day



Father's Day के उपलक्ष में आलोक श्रीवास्तव की बाबूजी 


घर की बुनियादें, दीवारें, बामो-दर थे बाबूजी
सबको बांधे रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबूजी

तीन मुहल्लों में उन जैसी क़द-काठी का कोई न था
अच्छे-ख़ासे, ऊँचे-पूरे क़द्दावर थे बाबूजी

अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
अम्माजी की सारी सज-धज, सब ज़ेवर थे बाबूजी

भीतर से ख़ालिस जज्बाती और ऊपर से ठेठ-पिता
अलग, अनूठा, अनबूझा-सा इक तेवर थे बाबूजी

कभी बड़ा सा हाथ ख़र्च थे, कभी हथेली की सूजन
मेरे मन का आधा साहस, आधा डर थे बाबूजी

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