अगर हम साथ होते तो क्या रात कम कली होती !
या दिन जादा सफ़ेद होता , सूरज की किरणों में तपिश जादा होती या चाँद में जादा शीतलता !
क्या बारिशें ज्यादा गीलीं होती या हवाओं के वेग् में फ़र्क होता ।
नहीं ऐसा कुछ नहीं होता , ऐसा हो सकता है केवल कविताओं में , हम भी शायद कविताओं की तरहा ही हैं , दो अलग अलग कविताएँ जिनमें कोई समानता नहीं है , सिवाए उस कवी के भाव के जिसको अपनी दोनों कविताएँ पूरी लगती हैं बिना उन्हें एक दुसरे से जोड़े हुए ।
तो क्या हम कभी मिलेंगे !
शायद उसी कवी की किसी कविता में हम फिर से एक हो जाएँ , तब हम एक नई कवता बन जायेंगे ,
जैसे एक ग़ज़ल जो छुपाए हुए है कई कविताएँ अपने भीतर,
ये कवी बहुत क्रन्तिकारी होते हैं ये कुछ भी कर सकते हैं।
--------- ब्लॉग मालिक
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