नींद क्यों नहीं आती !
शायद मै सोना भी नहीं चाहता ,बस करना चाहता हूँ याद तुम्हे , पर हर बार मुझे याद आता है तो सिर्फ
धुंधला होता एक चित्र ,
इसीलिए देखता रहता हूँ बस एकटक खिड़की के बाहर या उठ के चलने लगता हूँ ,
बस चलने लगता हूँ,
कहीं जाना नहीं चाहता , कहीं पहुँचना नहीं चाहता बस चलना
चाहता हूँ कुछ दूर तुम्हारे साथ, कुछ दूर तुम चली भी मेरे साथ पर जब मैंने मुड़ के
देखा तो तुम नहीं थीं ,
शायद तुम कभी थीं ही नहीं , शायद तुम मेरी कल्पनाओं से कभी बाहर
आई ही नहीं , शायद तुम सिर्फ एक कविता थी जो मै अपने दोस्तों को सुनना चाहता था पर
फिर मुझे वो हर पल अपनी आँखों के आगे नाचता हुआ दिखाई पड़ता है जब जब तुम मेरे साथ
थीं ,
पर अब तुम्हारे साथ ना होने से मुझे
दुःख नहीं होता , मै कोशिश करता हूँ दुखी होने की , रोने की और काफी हद तक कामयाब भी
रहता हूँ , पर शायद ये दुःख और रोना भी एक छलावा है मेरे अंतर्मन का , शायद !
कभी कभी मेरे अंतरमन हकीकत और छलावे के बीच के दोराहे में खो जाता है , कितनी भी कोशिश करे वह छलावे की
दीवार को तोड़ नहीं पाता, क्या तुम कभी थी ही नहीं , शायद नहीं , पर अब ये बता पाना मुस्किल हो गया है
, अब तुम्हारी यादें भी दीवार के रंग
की तरह धुंधली हो गई है ,
बस याद है तो ये के तुमने उस रात
मेरे गोद में सर रख कर कहा था की
आख़िर नींद क्यों नहीं आती !
--------- ब्लॉग मालिक
--------- ब्लॉग मालिक
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