Wednesday, 1 June 2016

यूँ ही की गई बातें #2

रोज़ देखता हूँ मैं खुद को मरते हुए

रोज़ देखता हूँ मैं खुद को मरते हुए और रोज़ जी उठता हूँ मैं ठीक वहीँ जहाँ मरा था

 कोई रोज़ कैसे मर सकता है ! नहीं मैं हकीकत में नहीं मरता , मरता हूँ तो अपनी ही बनाई एक विचित्र दुनिया में, हकीकत से परे एक दुनिया जहाँ हर वो चीज़ है जो मैं पाना चाहता था हकीकत में पर कभी पाने की कोशिश नहीं की ,

 उस दुनिया में तुम भी हो, या शायद तुम्हारे जैसी दिखने वाली लड़की
 ये मेरे लिए बता पाना कठिन है क्यूंकि ज़ब भी मैं तुम्हारे करीब आता हूँ ठीक तभी मेरी मौत हो जाती है
कितनी भी कोशिश करूँ तुम्हारे करीब नहीं आ पाता

और 
फिर जी उठता हूँ मैं हकीकत से भरी इस दुनिया मैं जो उतनी ही झूठी है जितनी मेरी मौत। 



                   ---------     ब्लॉग मालिक 

2 comments:

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    1. शुक्रिया ज़नाब, आगे भी कोशिश करते रहेंगे कुछ बेहतरीन देने का

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