कभी-कभी मैं आपको लेकर
इन पटरियों पर लेटना चाहता हूं
और रेल के करीब आने के उन क्षणों में
आपको बताना
कि कितना बेमानी था यह
कि आप मेरे चेहरे को कुचलके तान रहे थे
सीना
और आप महान हुए
जबकि महान होना एक रेल से नहीं बचा सकता
आपको
यह एक ऊँची दीवार है
और इसे तोड़ने जो मेरे कन्धों पर चढ़ा
है
उसे आसमान नज़र आता है
पर नज़र नहीं आते मेरे कन्धे और मेरा
पेट
आ से आम थे
पर मुझे एक आरी मिली रखी हुई
कि जो दुनिया थी मेरे यहाँ
उसमें हम सब अनचाहे थे
मैंने लोहे का बुरादा उठाया कुछ
और उसे रोटियों पे धरके खाया
-----gaurav solanki
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