जिस समय लोग 'विज्ञान-वरदान या अभिशाप' पर निबंध रटा करते थे,
उस समय हमने एक बीज पाया,
बीज जो एक चौकोर डिब्बे से निकलकर
हमारे ज़हन तक पहुँच बढ़ने लगा था, किसी ने बताया ये फ़िल्में हैं, एक ने कहा ये सिनेमा है।
वो आदमी जिसने उसे सिनेमा बताया था, कम बात करता और घंटो आग की तरफ देख
उसे चूमता और कहता के दिल्ली के किसी स्टेशन पर प्लैटफॉर्म नंबर पौने दस हो सकता
है जिसपर खड़ी ट्रेन किसी जादू सीखने के स्कूल की तरफ ले जाती है।
ये उसने एक किताब में पढ़ा था जिसके
मुख्य पात्र के सिर पर बिजली के आकार का निशान था, हालाँकि उसके माथे पर ऐसा कोई कुछ
नहीं था,
ये बात सुना वो ज़ोर से हँसने लगा
और आसमान की तरफ देख चिल्लाया 'शरबती गुलाब'।
उस दिन के बाद वो कहीं दिखायी नहीं
दिया,
लोगों ने कहा वो बम्बई भाग गया, एक ने कहा उसे आग खा गयी।
---- प्रवेश
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