सफेदी को जरा आने तो दो.......!
जवानी चार दिन की चांदनी है देखते हैं
जो एक दिन ढ़ल जाएगी तो देखते हैं
अभी तो बड़ा गुमान है नाजो-अदा पर
जब बूढ़ी हड्डियां चरमरायेंगी तो देखते हैं।
अभी बालों में काली है तो बदली लोग कहेंगे
सफेदी को जरा आने तो दो, फिर देखते हैं
अभी तो नर्म औं कमसीन, चमड़ों में रौनक है
जरा सिलवट तो आने दो फिर देखते हैं।
अभी तो हर तरफ छायी है सावन की बहार
जरा पतझड़ को आने दो, तो फिर देखते हैं
अभी गूंजती शहनाईयों के ख्वाबगाह में हो
जरा मातम तो आने दो फिर देखते हैं।
अभी तो जश्न में हो तुम्हे ख्याल कहां
कोई सवाल उठने दो, तो फिर देखते हैं
कर वजूद पे भरोसा पर कभी गरूर नहीं
जरा नीचे तो गिरने दो, तो फिर देखते हैं।
-- साकेत रमन
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर मॉस कम्युनिकेशन
DAVV
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