मैं कभी कुछ
कहना नहीं चाहती
ना ही कभी
कुछ सुनना चाहती हूँ
बस लिखना चाहती हूँ
हर वो बात
जो कहे जाने
पर सवाल छोड़
जाती है
कहूँगी तो समझना पड़ेगा
सुनूँगी तो समझना पड़ेगा
और तुम भी
जानते हो कि
अब हमारे बीच कहने-
सुनने और समझने को
कुछ नहीं बचा
तुम्हें कहने और
सुनने का फायदा भी
क्या था
तुमने सदा करी अपने
मन की
सुने भी अपने
मन की
मैं और मेरी
जिन्दगी तो बस
थी
तुम्हारे हाथ की
कठपुतली
----------मुक्ता भावसार
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