Sunday 25 September 2016

बेपनाह - मुक्ता

बेपनाह इश्क किया
बेपनाह इश्क लिखा |
कुछ ज़िन्दगी को तेरे साथ जिया
फिर ताउम्र उस साथ को जिया |
कभी तुझे याद किया
कभी खुद को बर्बाद किया |
किसी ने कहा ख़ूब लिखते हो
तुम हाल--दिल |
मैंने भी कह दिया
कुछ तो है ये उस बावफा का असर
अहसासे बयां करने का हुनर जो दिया |


                                     ------- मुक्ता भावसार

Friday 16 September 2016

एक उलझन मेरी भी है - मुक्ता

सुना है तुम गणित पढ़ाते हो
लाभ - हानि , ब्याज़ - मूल
सबका पता लगाते हो
लेकर आते हैं लोग तुम्हारे पास उलझने
सुना है तुम उनका हल बताते हो

एक उलझन मेरी भी है !
क्या तुम सुलझा पाओगे ?
तुमसे मिलकर लाभ क्या हुआ
मुझसे बिछड़ कर कुछ हानि हुई क्या ?

तेरे साथ गुज़ारे लम्हों पर यादों का कितना प्रतिशत ब्याज़ लगा ?

मीलों के समय की क्या गति थी 
कितना तेरे साथ बीता
कितना रही तुझ से ज़ुदा ?

इन् सब बातों का मुझे तुम हिसाब बताओगे क्या !

     
                                     --- मुक्ता भावसार 

Thursday 15 September 2016

बेईमान है ये दिल - अनु रॉय

और एक दिन अचानक उसकी कमी खलनी बंद हो जाती है, जिसके बिना जीना कभी मुश्किल सा लगता था। हमारी हर कमी को जिसका होना ही पूरा कर सकता था, उस कमी को भी भूल चुके होते हैं।
सब शांत हो जाता है। शांति भी वो सन्नाटे वाली, जैसे तेज़ बारिश, आँधी-तूफ़ान के बाद कोई नदी अपनी मधम चाल से धीरे-धीरे कल-कल करती चली जाए वैसे। कोई शिकायत कोई ग़ुस्सा, कुछ भी महसूस नही होता। हम समझने लग जाते हैं कि सब Normal हो गया है, हम Move on कर चुके है।
Bam.!! फिर आप किसी दिन कहीं जा रहे होते हो, किसी गली-नूक्कड़ से गुज़र रहें होते हैं और अचानक बैक्ग्राउंड में कोई, वो आपका सबसे फ़ेवरेट वाला रोमांटिक song play कर देता है, जिसको आप अपने प्लेलिस्ट से डिलीट कर चुके होते हैं। वो गाना जिसे कभी आपके लिए, उसके होने का मतलब था, वो गाना जिसे गुनगुना भर लेने से आप ख़ुद को उसके आग़ोश में महसूस करते थे। उसका पहला dedication आपके लिए या आपका पहला dedication उसके लिए।
बस, वहीं सारे move on और i am over with that shit का सत्यानाश हो जाता है। वो सारे लम्हे जिन्हें आप बमुश्किल कहीं छोड़ आयें होते हैं, कर फिर से लिपट जाते हैं। आँखों की नमी जो कई रात जाग कर आपने सुखाया होता है, फिर से अपनी जगह लौट आता है।
नही, ये दिल की नाइंसाफ़ी नही तो और क्या है। वो ज़ख़्म जिन्हें भरने में साल लग जाते हैं, कैसे किसी एक गाने की लाइन सुन कर दिल वापिस वहीं लौटने को करने लगता है। दिल का वैसे भी क्या जाता है, मुश्किल तो हमारी बढ़ जाती है न। हद है।
वैसे ये लिखने की कोई ख़ास वजह नही है। ख़ाली सुबह में सुन लिए थे उठते के साथ, कुमार सानू जी की आवाज़ में,
"पहला ये पहला प्यार तेरा मेरा सोनी
पहली ये मुलाक़ात है.!!"
बस कल्याण हो गया, तभी से।
बेईमान है ये दिल।https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/ube/1/16/2764_fe0f.png

                                                    --- अनु रॉय