Wednesday 27 July 2016

बारिश

इस बारिश में तन भीगा है,
उस बारिश में मन भीगा था।
कुछ तो है अब बदला है, कुछ तो है जो मन बदला है। 
पहले झूमे थे जो बारिशो में, अब खामोशी से निहारते है। 
पहले खूब मुस्कुराते थे जो, अब यादों से हारते है, 
दिल करता है साजिशें, जीत जाएं मन गहरी उदासी से अब हम है आधे अधूरे से, यादों की किस्सों में पुरे से अब लगता है फिर ना आएगी वो पहले वाली बारिशें, 
डर लगता है अब ऐसी है सताएगी उम्र भर यादों की ये बारिशें।

-मुक्ता भावसार

Friday 22 July 2016

छपाईखाना

                           छपाईखाना [16-जनवरी-2014]


[ब्रजेश]
पेन दो यार तुम ज़रा... ये क्या मज़ाक करा दिया है कार्ड का..
[जैन साब]
एक पेन से तो ये लिख रहें हैं मालिक.. दूसरे अपना अटॅच है.. हा हा हा .. अंदर फ्रिज से
[ब्रजेश]
अबे तुम मज़ाक मत दो यार... ज़रा सीरियस्ली  काम किया करो..
[जैन साब]
भाईसाब 4 बातें नहीं करूँगा कस्टमर से.. तो ग्राहकी थोड़ी कर पाऊँगा बाज़ार में
अब इन भाईसाब से पूछलो कब से आ रहे हैं हमारे पास
[कस्टमर ]
1 साल से..
[ब्रजेश]
अरे तो इनके होंगें  ऐसे शौक.. हमारे नहीं हैं..
[जैन साब]
अरे बेटा इनकी प्रूफ रीडिंग कर दे नीचे निकल लो सर आप
[ब्रजेश]
क्या?
[जैन साब]
लड़का बैठा है सर अपना नीचेवो देखो
[ब्रजेश]
प्रूफ रीडिंग?..  शादी के कार्ड में
[जैन साब]
सर आपके पेपर से ज्यादा खतरनाक काम है शादी का कार्ड छापना..एक मात्रा हटी-दुर्घटना घटी
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[नीचे गोदाम का द्रिश्य]
[ब्रजेश]
ये यार वधू आगमन तुमने 8 जन्वरी का कर रखा है.. और बारात प्रस्थान 10 जन्वरी का.. ये कर क्या रहे हो यार
[नाइस]
देखो सर ऐसा है.. इससे बोलते हैं प्रूफ रीडिंग.. आप बस बताओ.. और इधर कमाल देखो.. जो नाम करना है, जो तारीख़ करनी है
वो करदेंगे कहो तो वधू का नाम कटरीना कर दें
(सब हँसने लगते हैं)
[ब्रजेश]
नाम सही करदो ये.. बिरजेश नहीं ब्रजेश-ब्र-जेश और यहाँ लिखो चाचा जी के नाम के आगे सूबेदार
और ये ब्रजेश के आगे ब्रैकेट में लिखो सॉफ्टवेर इंजीनियर.. सॉफ्टव्वियर नाहीं.. सॉफ्टवेर
[नाइस]
आपकी शादी है सर..
[ब्रजेश]
हाँ
[नाइस]
कितने पैसे खतम हो जाते होंगें  इंजिनयर बनने में?
[ब्रजेश]
लग जाते हैं कॉलेज के हिसाब से
[संजय]
अबे तू भी तो इंजीनियर है.. जिसको जो काम आता है वो उसका इंजीनियर... क्यूँ  मार्केटिंग  मॅनेजर.. ”
[कार्ड गिन रहा आदमी/मार्केटिंग मॅनेजर]

मतलब ये सामने मिठाई वाला मिठाई इंजीनियर.. तू छपाई मशीन इंजीनियर.. सालो काम करो जल्दी.. अभी वो अंग्रजी शादी के
कार्ड वाला तुम्हारा बाप आ रहा है..
[संजय]
ये साला नौकरी ही खराब है...  इससे अच्छा तो साला रंडी है..  मजा भी लो, पैसे भी कमाओ..
[कार्ड गिन रहा आदमी/मार्केटिंग मॅनेजर]
काम करो बे
[संजय]
ऊपर जाऊँगा तो बोलूँगा के अगले जनम में साला रंडी बनाओ..  प्रोफेशनल रंडी
[नाइस]
जैन साब... ये भाई का काम करके थोड़ा जल्दी निकलूँगा..  आज ईद है तो..
[जैन साब]
चला जइयो..
[संजय]
अरे हमारी भी तो मकर संक्रांति है...  हम भी जाएंगे जल्दी
[जैन साब]
आबे उसकी बीवी पेट से है..शादी का सीज़न है..तू काम कार ज़राऔर वो सामने वाली लड़की से क्या चल रहा है बे
तेरा..बताऊँ क्या घर पे
[संजय]
अरे वो तो बस.. चूतिया (विस्परिंग)
[ब्रजेश]
ये ऊपर क्या खज़ाना खोद रहें हैं?  इतनी तेज़ आवाज़ ... पूरी बिल्डिंग बज रही है
[कार्ड गिन रहा आदमी/मार्केटिंग मॅनेजर]
उपर जमीन बदल रहे हैं..एक-एक टाइल डेड-डेड सौ रुपये की है..
[नाइस]
देखो सर ये ठीक है..एक बार चेक कर लो ..फिर फाइनल प्रिंट दे दें
[ब्रजेश]
ये ठीक है...ब्रजेश..कमल..जय सिंघ..पूनम.... शाकालाका बूम बूम ,शादी में खूब मचाएंगे धूम... ये हटाओ यार, ये अच्छा थोडी लगता है..
[नाइस]
अरे बढ़िया है सर ये..आज कल सब छपवाते हैं..अपने जैन साहब ही लिखते  हैं
[ब्रजेश]
हटा दे यार इसे..
[दबंग सा आदमी]
" अबे जैन , वो कार्ड छापे आज के नहीं , और अगर नहीं छपे तो बुला अपने लौंडे को,  कल बड़ा बोल रहा था, ले जाना शाम को,
बुला साले को "
[जैन साब]
" अरे क्या सर, जवान लौंडा है, गलती हो गयी, में भिजवाता हूँ ना सुबह कार्ड.... "
[दबंग सा आदमी]
" बुला बे उसे बैंचो "
[संजय]
" गाली मत दो  "
[दबंग सा आदमी]
" तेरी माँ.... "
[संजय वापस नीचे गोदाम में दाख़िल होता हुआ]
[नाइस]
" ये तेरी आँख कैसे काली हो गयी? "
[संजय]
" अंग्रजी के कार्ड से... "
[नाइस]
" हा हा हा.. .  पता है तू  क्या  लग रहा है "
[संजय]
" क्या? "
[नाइस]
" प्रोफेशनल रंडी "



                      ------ प्रवेश

Monday 18 July 2016

ऐ लोगों खामोश रहो - इब्ने इंशा

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो, खामोश रहो
ऐ लोगों खामोश रहो हाँ ऐ लोगों खामोश रहो

सच अच्छा, पर उसके जलू में, जहर का है इक प्याला भी
पागल हो ? क्यों नाहक को सुकरात बनो, खामोश रहो

हक़ अच्छा पर उसके लिए कोई और लड़े तो और अच्छा
तुम भी कोई मंसूर हो जो सूली पर चढो, खामोश रहो

उनका ये कहना सूरज ही धरती के फेरे करता है
सर आँखों पर, सूरज ही को घूमने दो – खामोश रहो

महबस में कुछ हब्स है और जंजीर का आहन चुभता है
फिर सोचो, हाँ फिर सोचो, हाँ फिर सोचो, खामोश रहो

गर्म आंसू और ठंडी आहें, मन में क्या क्या मौसम हैं
इस बगिया के भेद न खोलो, सैर करो, खामोश रहो

आँखें मूँद किनारे बैठो, मन के रक्खो बंद किवाड़
इंशा जी लो धागा लो और लब सी लो, खामोश रहो



                       --------  इब्ने इंशा 

Saturday 16 July 2016

वहाँ का बहुत कुछ, या शायद सब कुछ था जो बदल देना चाहिए था

वहाँ का बहुत कुछ, या शायद सब कुछ था जो बदल देना चाहिए था,
वो इस तरह से बातें करते जो मुझे समझ नहीं आती, वो आपसे कहते आप अच्छे आदमी हैं,
फिर औरों को मुसकुराते हुए बताते इनकी बीवी इन्हें छोड़ कर जा चुकी है!

वो जानना चाहते के आप शाम की पार्टी में चलेंगे या नहीं और आप के जवाब देने से पहले ही कहते के इस बार साल के आखिर मे बोनस नहीं मिलेगा, शायद कुछ लोगों को निकाल भी दिया जाए!
एक ने कहा के मोटे लड़के रिजैक्ट कर देने चाहिए अगर पैकेज अच्छा न हो!
मैं कोशिश करता रहा की उनकी भाषा सीख सकूँ, पर उनकी बातों में व्याकरण से ज़्यादा गणित होता!

वो मुझे विश्वसनीय मानते थे, पर विश्वास कीजिए मुझे उनकी एक भी बात याद नहीं जो वो चाहते मैं किसी से ना कहूँ!
हालांकि उनके साथ रहने का ये सबसे आसान सौदा था, पर मुझे थोड़ा ज़्यादा मुसकुराना होता!
उन क्षणों में भी जब उनकी बाते सुनकर मैं चाहता के दुनिया के सभी खंजर इनमें एकसाथ घोंप दिए जाएँ!

मैं दफ्तर नौ बजे पहुंचता और रोज़ दुआ करता के काश नौ के बाद सीधे छह बज जाएँ, पर ऐसा कभी नहीं हुआ!


शायद घड़ी बनाने वाले भी इन्हीं जैसे लोग थे, कम से कम मैं यही मानता हूँ!


                                                 ---प्रवेश 

Tuesday 12 July 2016

अच्छे कवि कहाँ हैं

हिन्दी के लेखक नाराज हैं कि अच्छे कवि कहाँ हैं?
सारे अच्छे कवि अभी व्यस्त हैं।
एक अच्छा कवि व्यस्त है सरकार के विश्लेषण में,
एक सरकारी नौकरी की तैयारी में
और एक तैयारी से हारकर प्राइवेट नौकरी में।
एक अच्छा कवि अभी प्यार में पड़ रहा है
और एक प्यार से उबर रहा है।
एक अच्छा कवि कहीं शराब पीने की तैयारी में होगा।
और एक अपनी कविताओं पर संशय कर रहा होगा।
एक अच्छा कवि कवियत्री है और फेमिनिस्ट भी।
एक अच्छा कवि प्रकाशित हो गया है पर अब वो उतना अच्छा नहीं रहा।

और अब अगर एक और अच्छा कवि मिल भी जाए तो क्या। सिर्फ एक अच्छे कवि से कुछ नही होगा।


       ----चिराग़ शर्मा 

Monday 11 July 2016

शब्बाखैर


और भाई,क्या हालचाल?”
बस बढ़िया” मैं पीछे मुड़ा और हल्का मुस्कुराया
सॉरी सर, मैनें आपको कोई और समझ लिया था! वैसे माचिस होगी?” मैने लाइटर बढ़ाया
आप यहां सामने काम करते हैं?”
हां,वहीं से आ रहा हूं”
मैं यहीं सामने रहता हूं,आप यहीं से हैं या बाहर से?”
नहीं दिल्ली से हूं, तुम लोकलाइट तो नहीं लगते”
हां पटना से हूं,स्ट्रगलर हूं,लिखता हूं”
क्या बात है, तुम तो यार लेखक निकले”
वो हंसा और बोला “वैसे आज ठंड बहुत है”
मैने जेब में हाथ डालते हुए सिर हिलाया
लगता है कोहरा कई दिन और रहेगा” उसने धुआं ऊपर उड़ाते हुए कहा
हां कुछ कह नहीं सकते”
लेखक हूं सर, लिख के दे सकता हूं,इस साल का कोहरा हमेशा याद रखा जाएगा, कई रिकॉर्ड टूटेंगे इस दफ़े”
हा हा हा”
मेरी बस आ गई, अच्छा सर मिलते हैं”
बाय” मैने हाथ हिलाकर कहा.
शब्बाखैर” वो बस में चढ़ते हुए बोला.

सर ये न्यूज़ पढ़े आप?” ऑफिस बॉय ने पूछा.

कौन सी न्यूज़?” मैने सिगरेट जलाते हुए कहा.
एक लड़के का यहीं सामने चौराहे के पास पोलीस से झड़प हुआ, पोलीसवाला पहले उसे बेल्ट से मारा, फिर जूते से मार-मारकर मार दिया, लड़का पटना का ही था हमारे!”
मुझे घुटन महसूस हुई,
बालकनी में रखे गमले की मिट्टी में एक शब्द लिखा मैंने,
शब्बाखैर”
कोहरा पूरे महीने जमा रहा!

-------प्रवेश



--ये प्रवेश नौटियाल की कहानी है जो की thelallantop.com पर भी छप चुकी है वो भी फ़ोटो के साथ , माफ़ कीजिये फ़ोटो नहीं मिल पाया , अगली बार कोशिश करेंगे तब तक कहानी से काम चलिए |   

Saturday 9 July 2016

जिन्दगी किश्तों में #3


एक समय जेबों मे इतने दुख भर लिए थे कि अनायास निकल आए आँसुओं का कोई हिसाब नही लग पाता था।
ऐसे मे उस किराये के कमरे में पडे हुए तुम अक्सर एक दोस्त को याद करते। यह दोस्त कहानियाँ, कविताएँ लिखता था। उस दोस्त ने तुम्हें कविताओं से रूबरू करवाया। फिल्में देखना सिखाया। यह दोस्त तुम्हें तोहफे में उम्मीद देता था और समझाता था बहुतेरा सब्र रखने को। तुम्हारे सकारात्मकता की जमा पूंजी यही दोस्त था और धीरे-धीरे तुम्हारे लिए उम्मीद का पर्याय बन गया।
वो एक शार्ट फिल्म बनाना चाहता था लेकिन तुम पर किया विश्वास शायद उसकी बड़ी भूल थी। वो फिल्म नही बनी और तुम्हारा दोस्त जो कहानियाँ लिखता था, अब एक कंपनी में कोड लिखने लगा।
जारी..


                        [जिन्दगी किश्तों में]
              चिराग़ शर्मा 


गैरज़रूरी सूचना-- ये "ज़िन्दगी किश्तों में" की तीसरी किश्त है  , पहली और दूसरी किश्त आप को इसी ब्लॉग पर मिल जाएगी नीचे छपी लिंक पर ,आगे की किश्तें भी जल्द ही भर दी जायेंगी | 

पहली किश्त पढने के लिए यहाँ क्लिक करें http://zeerokattas.blogspot.in/2016/06/blog-post_15.html

दूसरी  किश्त पढने के लिए यहाँ क्लिक करें http://zeerokattas.blogspot.in/2016/06/2.html


Friday 8 July 2016

प्रेम ! जो की सलमान खान नहीं है




 प्रेम पर सारे संसार में बहुत कुछ लिखा गया है। सिर्फ लेखक, कवि और शायर ही नहीं, धर्मज्ञ भी इस पर कहते रहे हैं। जितना इसे सराहा गया है उतनी ही इसकी आलोचना भी हुई है... डायरेक्ट या इनडायरेक्ट, लेकिन हुई है। कभी मज़ाक उड़ा है तो कभी युद्ध और भीषण नरसंहार के लिए भी प्रेम को ही ज़िम्मेदार बताया गया है। इस पर कई तरह के फलसफे दिए गए हैं। कुछ एक जैसे तो कुछ बिलकुल अलग हैं। हालांकि इनका मेल खाना जरूरी भी नहीं है, क्योंकि प्रेम कोई लॉजिक नहीं है। एक आभास है जिसका हर किसी को अलग रूप में नज़र आता होगा। छोटी-छोटी बातें इसे मज़बूती देती हैं। ऐसी ही कुछ बाते इसे कमज़ोर बनाती हैं। कभी-कभी एक ज़रा सी बात प्रेम को उसकी विपरीत अवस्था, नफरत तक ले जाती है।
प्रेम एक अवस्था है स्वार्थ रहित, मुक्त, जिसमें शर्त नाम की रूकावट के लिए कोई जगह नहीं है। प्रेम नाज़ुक है, निर्मल है। बाकी सारी भावनाएं आसक्ति हैं, सिर्फ लगाव है। आसक्ति इंसान की ज़रूरतों में पैदा होती है, इसमें शर्तें भी होती हैं, जरूरतें भी और अहंकार भी। यह अस्थिर और पूरी तरह शर्तों पर निर्भर होता है।   

कई/ बहुत से माता-पिता अपने बच्चों का करियर स्वयं की इच्छानुसार ही चुनते है और उन्हें उस ओर अग्रसर करते हैं। इसी तरह वे चाहतें है की उनके बच्चे उन्हीं की पसंद से शादी करें। हमारे देश में ‘हॉनर किल्लिंग’ के ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं सिर्फ इसलिए क्यूंकि माता-पिता का यह मानना होता है की उनके बच्चे द्वारा चुना गया जीवन साथी उनके स्तर के बराबर नहीं है, क्या यह उनके प्रेम को दर्शाता है...?
एक और हम देखते है आज कल के युवा चंद मुलाकातों को प्रेम समझने लगते है, असल में वे किससे प्यार करते है, उनकी खूबसूरती से, रहन सहन के तरीके से, या फिर उस खास देख-रेख से जो उन्हें मिलता है उनकी कमियों और कमजोरियों के बावजूद भी।

बहुत से लोग अपने पास लिस्ट बना के रखते है उन चीजों की जो वे अपने लाइफपार्टनर चाहतें है। लेकिन उस लिस्ट में ऐसी कोई चीज़ नहीं होती जो वे अपने लाइफपार्टनर को दे सकें। हम सिर्फ लेने के बारे में सोचते हैं, देना हम नहीं जानते, फिर चाहे वह आज-कल का प्यार ही क्यों न हो।
सच्चे प्यार को पाना कठिन क्यों माना जाता है! क्या सच्चा प्यार विशेष और चुने हुए लोगों के लिए ही है..?

असल में प्रेम हमारे चारों तरफ़ है। और वह उतना ही सात्विक है जितने हमारे सूरज और चाँद-सितारे है। लेकिन इस खूबसूरत अनुभूति को हम तब तक नहीं समझ सकते , जब तक हम खुद इसे महसूस और समझेंगे नहीं।

जिसका हृदय अपार प्रेम से परिपूर्ण हो वह दुनिया का आकलन घृणित निगाहों से नहीं देख सकता जिस तरह बाकी लोग देखते है। क्यूँकी उन्हें बदले में कुछ नहीं चाहिए होता वे सदा प्रेम बाँटने में विश्वास रखते हैं। प्रेम में कभी किसी तरह का ऋण नहीं चुकाया जाता है यह तो निस्वार्थ रिश्ता है जिस तरह सूरज और चाँद का उनकी रौशनी के साथ है।

सच यह है कि जितनी जल्दी हम प्रेम को अभिव्यक्त करना, बांटना सीख जायेंगे और जिस दिन जान लेंगे जो हम ढूंढ रहे थे वह हमारे भीतर ही उस दिन हम सोने की खदान पर बैठे हुए भिक्षुक नहीं रहेंगे।

      
             --- ये शालनी सिंह के 'Soul Space' मैगज़ीन में छपे अंग्रेजी  आर्टिकल ' Abiding Love: Resolving an enigma ' का हिंदी अनुवाद है | अंग्रेजी में पढ़ना हो तो मैगज़ीन ख़रीद सकते हैं और हिंदी अनुवाद पढ़ना हो तो आप का स्वागत है .
             

                              --- अनुवाद - प्रिया व्यास 
                          




              

Sunday 3 July 2016

ख़त्म होता बचपन

किसी एक शाम ..
घर से दूर किसी शहर में काम की व्यस्तता में जुझते हुए, जब अपने दूर होते नज़र आते हैं। तभी किसी एक शाम फ़ोन की घंटी सुनाई पड़ती है, वो फ़ोन है आप के घर से...

फ़ोन के उस तरफ से दबी हुई आवाज़ आती है, "घर आना भूल गए या आना नहीं चाहते," फ़ोन पर अपनी माँ से बात की, मुझसे कहा की, यह आवाज़ थी उस पिता की जो प्यार जताना नहीं जानते लेकिन ये चंद अलफ़ाज़ उनकी तकलीफ़, उनके बच्चे से मिलने की तड़प बयां कर गए।
क्या प्यार जताने के लिए शब्दों की ज़रूरत होती है, ये छोटी-छोटी शिकायतों में एक पिता का निस्वार्थ प्रेम नहीं छलकता, या हम समझना नहीं चाहते...
ठीक उसी दिन कुछ पहर बाद..
बारिश और शाम की भीड़-भाड़ के बीच, शहर के किसी सिग्नल पर गाड़ियों के हॉर्न की आवाज़ और लोगों के शोरगुल से आती एक आवाज़.. "तू मेरा बच्चा है इसलिए समझाता हूँ , डांटता हूँ.."

इस समझाइश को न समझने वाला और भीड़ में असहज़ महसूस करने वाला वह नादान बच्चा, झुंझला कर बोल पड़ा, क्या पापा यहाँ भी..
भीड़ में ख़ुद के सवालों से लड़ते हुए यह वाक्या हमें सच से रूबरू करा गया।
हम यह तो समझते है, लेकिन उम्र के उस पड़ाव पर आ कर, जब समझाइश, शिकायतों में तब्दील हो जाती है और हम अपने बचपन के सुनहरे दौर से गुज़र चुके होते हैं।


                                       --- प्रिया व्यास