Thursday 29 December 2016

अधूरे उलझे पर अन्तहीन हो तुम - मुक्ता

कोई आधी छूटी कविता
कोई उलझा सा विचार
एक ऐसी कहानी जिसका
अन्त  लिखना हो गया हो कठिन ,
तुम भी उसी तरह हो गए हो ,

अब मेरी जन्दगी
आधे अधूरे से जिस्म से  छूटे  हुए पर रूह से बंधे हुए |
उलझी हुई आज भी हूँ
इस पहेली की तरह
तुम्हारा इंतज़ार करूँ या नहीं ,
अपनी उम्मीद पर एतबार करूँ या  नहीं ,

और किसी कहानी की तरह
हमारे प्यार का अन्त मैं चाहती नहीं |
क्योंकि मेरा प्यार अन्तहीन है

मेरा प्यार अनन्त है

                ------ मुक्ता भावसार 

No comments:

Post a Comment