मुस्कुराना, गुनगुनाना फिर डर
के दिल का
बैठ जाना,
इश्क की रवायतें है, क्यों फंस रही
है जिंदगी।
इश्क इश्क चल
रही थी जिंदगी,
ख्वाब बुनती चल रही
थी जिंदगी।
आज गयी जब
फैसले की घड़ी,
बात से पलट
रही है जिंदगी।
सर्दियाँ, गर्मियाँ , बारिशें फिर सर्दियाँ,
चल रही थी, चल रही है, चलती रहेगी जिंदगी।
----- चिराग़ शर्मा
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