क्या तुम्हें याद नहीं
था
मेरा नाम, मेरा धर्म
या किस जगह
से मेरा ताल्लुक है
तुम ये भूल
गए थे
नहीं ऐसा तो
कुछ नहीं था
जब हम मिले
थे, तुम जानते थे
हर वो बात
जो जानना तुम्हारा लिए जरूरी था
मुझे याद है
मेरी ज़िन्दगी का
हर पन्ना तुम्हारे सामने एक दम
स्पष्ट था
फिर क्यों अचानक याद आया
तुम्हें
नहीं निभा सकते
तुम सारे वादे
नहीं जोड़ सकते
तुम उम्र भर
का बंधन
तुम्हें रोक रहा
है तुम्हारा धर्म
परिवार बन रहा
है तुम्हारी अड़चन
या मैं स्वीकृत नहीं
की जाऊँगी तुम्हारे समाज में
में आज भी
वैसी ही हूँ
जैसी सालो पहले
थी
मैंने कुछ नहीं
बदला
ना ही अपना
नाम
ना ही अपनी
पहचान
और ना ही
अपना धर्म
फिर जिम्मेदारी निभाने के नाम
पर
तुम क्यों परिवार,समाज मान-सम्मान की दुहाई दे
रहे हो
क्यों तुम इतने
बदले बदले लग
रहे हो....
कहो क्यों तुम इतने
बदले बदले से
लग रहे हो.
---------- मुक्ता भावसार
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 13 जून 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुंदर।
ReplyDeleteबढिया
ReplyDeleteवादा करना सरल है निबाहना कठिन ।।
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