कभी कभी मैं
एक कविता हो जाना
चाहता हूँ,
जिसका एक कोना
मोड़ रखा है
तुमने,
जिसे तुम बार
बार पढ़ती हो क्यूँकि वो
लगती है तुम्हे खुद
सी,
कभी कभी मैं
एक ख्वाब हो जाना
चाहता हूँ,
जो लिख रखा
है तुमने अपनी डायरी के
पन्नो में कहीं,
जिसे तुम किसी
को पढ़ने नहीं देती,
और कभी कभी
मैं ‘मैं’ हो जाना
चाहता हूँ,
वही मैं जो
तुम्हारा हूँ,
जिस से आसानी से
ढूँढ सको मुझे
तुम मुझ में
से
-------- चिराग शर्मा
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