प्रेम पर सारे संसार में बहुत कुछ लिखा
गया है। सिर्फ लेखक, कवि और शायर ही नहीं, धर्मज्ञ भी इस पर कहते रहे हैं। जितना
इसे सराहा गया है उतनी ही इसकी आलोचना भी हुई है... डायरेक्ट या इनडायरेक्ट, लेकिन
हुई है। कभी मज़ाक उड़ा है तो कभी युद्ध और भीषण नरसंहार के लिए भी प्रेम को ही
ज़िम्मेदार बताया गया है। इस पर कई तरह के फलसफे दिए गए हैं। कुछ एक जैसे तो कुछ
बिलकुल अलग हैं। हालांकि इनका मेल खाना जरूरी भी नहीं है, क्योंकि प्रेम कोई लॉजिक
नहीं है। एक आभास है जिसका हर किसी को अलग रूप में नज़र आता होगा। छोटी-छोटी बातें
इसे मज़बूती देती हैं। ऐसी ही कुछ बाते इसे कमज़ोर बनाती हैं। कभी-कभी एक ज़रा सी
बात प्रेम को उसकी विपरीत अवस्था, नफरत तक ले जाती है।
प्रेम एक अवस्था है स्वार्थ रहित, मुक्त,
जिसमें शर्त नाम की रूकावट के लिए कोई जगह नहीं है। प्रेम नाज़ुक है, निर्मल है।
बाकी सारी भावनाएं आसक्ति हैं, सिर्फ लगाव है। आसक्ति इंसान की ज़रूरतों में
पैदा होती है, इसमें शर्तें भी होती हैं, जरूरतें भी और अहंकार भी। यह अस्थिर और
पूरी तरह शर्तों पर निर्भर होता है।
कई/ बहुत से माता-पिता अपने बच्चों का
करियर स्वयं की इच्छानुसार ही चुनते है और उन्हें उस ओर अग्रसर करते हैं। इसी तरह
वे चाहतें है की उनके बच्चे उन्हीं की पसंद से शादी करें। हमारे देश में ‘हॉनर किल्लिंग’
के ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं सिर्फ इसलिए क्यूंकि माता-पिता का यह मानना
होता है की उनके बच्चे द्वारा चुना गया जीवन साथी उनके स्तर के बराबर नहीं है,
क्या यह उनके प्रेम को दर्शाता है...?
एक और हम देखते है आज कल के युवा चंद
मुलाकातों को प्रेम समझने लगते है, असल में वे किससे प्यार करते है, उनकी खूबसूरती
से, रहन सहन के तरीके से, या फिर उस खास देख-रेख से जो उन्हें मिलता है उनकी
कमियों और कमजोरियों के बावजूद भी।
बहुत से लोग अपने पास लिस्ट बना के रखते
है उन चीजों की जो वे अपने लाइफपार्टनर चाहतें है। लेकिन उस लिस्ट में ऐसी कोई चीज़
नहीं होती जो वे अपने लाइफपार्टनर को दे सकें। हम सिर्फ लेने के बारे में सोचते
हैं, देना हम नहीं जानते, फिर चाहे वह आज-कल का प्यार ही क्यों न हो।
सच्चे प्यार को पाना कठिन क्यों माना
जाता है! क्या सच्चा प्यार विशेष और चुने हुए लोगों के लिए ही है..?
असल में प्रेम हमारे चारों तरफ़ है। और
वह उतना ही सात्विक है जितने हमारे सूरज और चाँद-सितारे है। लेकिन इस खूबसूरत
अनुभूति को हम तब तक नहीं समझ सकते , जब तक हम खुद इसे महसूस और समझेंगे नहीं।
जिसका हृदय अपार प्रेम से परिपूर्ण हो वह
दुनिया का आकलन घृणित निगाहों से नहीं देख सकता जिस तरह बाकी लोग देखते है।
क्यूँकी उन्हें बदले में कुछ नहीं चाहिए होता वे सदा प्रेम बाँटने में विश्वास
रखते हैं। प्रेम में कभी किसी तरह का ऋण नहीं चुकाया जाता है यह तो निस्वार्थ
रिश्ता है जिस तरह सूरज और चाँद का उनकी रौशनी के साथ है।
सच यह है कि जितनी जल्दी हम प्रेम को
अभिव्यक्त करना, बांटना सीख जायेंगे और जिस दिन जान लेंगे जो हम ढूंढ रहे थे वह
हमारे भीतर ही उस दिन हम सोने की खदान पर बैठे हुए भिक्षुक नहीं रहेंगे।
--- ये शालनी सिंह के 'Soul Space' मैगज़ीन में छपे अंग्रेजी आर्टिकल ' Abiding Love: Resolving an enigma ' का हिंदी अनुवाद है | अंग्रेजी में पढ़ना हो तो मैगज़ीन ख़रीद सकते हैं और हिंदी अनुवाद पढ़ना हो तो आप का स्वागत है .
--- अनुवाद - प्रिया व्यास
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