Monday, 18 July 2016

ऐ लोगों खामोश रहो - इब्ने इंशा

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो, खामोश रहो
ऐ लोगों खामोश रहो हाँ ऐ लोगों खामोश रहो

सच अच्छा, पर उसके जलू में, जहर का है इक प्याला भी
पागल हो ? क्यों नाहक को सुकरात बनो, खामोश रहो

हक़ अच्छा पर उसके लिए कोई और लड़े तो और अच्छा
तुम भी कोई मंसूर हो जो सूली पर चढो, खामोश रहो

उनका ये कहना सूरज ही धरती के फेरे करता है
सर आँखों पर, सूरज ही को घूमने दो – खामोश रहो

महबस में कुछ हब्स है और जंजीर का आहन चुभता है
फिर सोचो, हाँ फिर सोचो, हाँ फिर सोचो, खामोश रहो

गर्म आंसू और ठंडी आहें, मन में क्या क्या मौसम हैं
इस बगिया के भेद न खोलो, सैर करो, खामोश रहो

आँखें मूँद किनारे बैठो, मन के रक्खो बंद किवाड़
इंशा जी लो धागा लो और लब सी लो, खामोश रहो



                       --------  इब्ने इंशा 

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