एक समय जेबों मे इतने दुख भर लिए थे कि
अनायास निकल आए आँसुओं का कोई हिसाब नही लग पाता था।
ऐसे मे उस किराये के कमरे में पडे हुए
तुम अक्सर एक दोस्त को याद करते। यह दोस्त कहानियाँ, कविताएँ लिखता
था। उस दोस्त ने तुम्हें कविताओं से रूबरू करवाया। फिल्में देखना सिखाया। यह दोस्त
तुम्हें तोहफे में उम्मीद देता था और समझाता था बहुतेरा सब्र रखने को। तुम्हारे
सकारात्मकता की जमा पूंजी यही दोस्त था और धीरे-धीरे तुम्हारे लिए उम्मीद का
पर्याय बन गया।
वो एक शार्ट फिल्म बनाना चाहता था लेकिन
तुम पर किया विश्वास शायद उसकी बड़ी भूल थी। वो फिल्म नही बनी और तुम्हारा दोस्त
जो कहानियाँ लिखता था, अब एक कंपनी में कोड लिखने लगा।
जारी..
[जिन्दगी किश्तों में]
चिराग़ शर्मा
गैरज़रूरी सूचना-- ये "ज़िन्दगी किश्तों में" की तीसरी किश्त है , पहली और दूसरी किश्त आप को इसी ब्लॉग पर मिल जाएगी नीचे छपी लिंक पर ,आगे की किश्तें भी जल्द ही भर दी जायेंगी |
पहली किश्त पढने के लिए यहाँ क्लिक करें http://zeerokattas.blogspot.in/2016/06/blog-post_15.html
दूसरी किश्त पढने के लिए यहाँ क्लिक करें http://zeerokattas.blogspot.in/2016/06/2.html
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