वहाँ का
बहुत कुछ, या शायद सब कुछ था जो बदल देना चाहिए था,
वो इस
तरह से बातें करते
जो मुझे समझ नहीं आती, वो आपसे कहते आप अच्छे आदमी हैं,
फिर
औरों को मुसकुराते हुए बताते इनकी बीवी इन्हें छोड़ कर जा चुकी है!
वो
जानना चाहते के आप शाम की पार्टी में चलेंगे या नहीं और आप के जवाब देने से पहले
ही कहते के इस बार साल के आखिर मे बोनस नहीं मिलेगा, शायद कुछ लोगों
को निकाल भी दिया जाए!
एक ने
कहा के मोटे लड़के रिजैक्ट कर देने चाहिए अगर पैकेज अच्छा न हो!
मैं
कोशिश करता रहा की उनकी भाषा सीख सकूँ, पर उनकी बातों में व्याकरण से ज़्यादा
गणित होता!
वो मुझे
विश्वसनीय मानते थे,
पर विश्वास कीजिए मुझे उनकी एक भी बात याद नहीं जो वो चाहते मैं किसी
से ना कहूँ!
हालांकि
उनके साथ रहने का ये सबसे आसान सौदा था, पर मुझे थोड़ा ज़्यादा मुसकुराना होता!
उन
क्षणों में भी जब उनकी बाते सुनकर मैं चाहता के दुनिया के सभी खंजर इनमें एकसाथ
घोंप दिए जाएँ!
मैं
दफ्तर नौ बजे पहुंचता और रोज़ दुआ करता के काश नौ के बाद सीधे छह बज जाएँ, पर ऐसा
कभी नहीं हुआ!
शायद
घड़ी बनाने वाले भी इन्हीं जैसे लोग थे, कम से कम मैं यही मानता हूँ!
---प्रवेश
No comments:
Post a Comment