तुम्हें उसका चेहरा
कभी याद नही आया। एक शाम वो बहुत देर तक किसी बात पर हँसती रही थी। कई दफे तुमने
वो बात याद करने की कोशिश की। पर वक्त ने सब धुंधला कर दिया।
इश्क़ ने तुम्हें
निकम्मा कर दिया और 65% की डिग्री ने नाकारा।
तुम्हें ना इश्क़ में
नाकामी ने हराया, ना किसी जानलेवा बीमारी ने और
ना ही बेरोजगारी ने। एक रोज तुम बस खुद से ही हार गए। उस दोस्त ने तुम्हारा साथ
दिया। वो दोस्त शराबी था और तुम ना-उम्मीद।
जारी..
[जिन्दगी
किश्तों मे]
चिराग़ शर्मा
गैरज़रूरी सूचना-- ये "ज़िन्दगी किश्तों में" की दूसरी किश्त है , पहली किश्त आप को इसी ब्लॉग पर मिल जाएगी नीचे छपी लिंक पर ,आगे की किश्तें भी जल्दी ही भर दी जायेंगी |
पहली किश्त पढने के लिए यहाँ क्लिक करें http://zeerokattas.blogspot.in/2016/06/blog-post_15.html
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