Wednesday 1 June 2016

यूँ ही की गई बातें #4

अगर हम साथ होते तो क्या रात कम कली होती !

 या दिन जादा सफ़ेद होता , सूरज की किरणों में तपिश जादा होती या चाँद में जादा शीतलता !

 क्या बारिशें ज्यादा गीलीं होती या हवाओं के वेग् में फ़र्क होता

        नहीं ऐसा कुछ नहीं होता , ऐसा हो सकता है केवल कविताओं में , हम भी शायद कविताओं की तरहा ही हैं , दो अलग अलग कविताएँ जिनमें कोई समानता नहीं है , सिवाए उस कवी के भाव के जिसको अपनी दोनों कविताएँ पूरी लगती हैं बिना उन्हें एक दुसरे से जोड़े हुए

तो क्या हम कभी मिलेंगे !
शायद उसी कवी की किसी कविता में हम फिर से एक हो जाएँ , तब हम एक नई कवता बन जायेंगे ,
जैसे एक ग़ज़ल जो छुपाए हुए है कई कविताएँ अपने भीतर,


ये कवी बहुत क्रन्तिकारी होते हैं ये कुछ भी कर सकते हैं।




                                                  ---------     ब्लॉग मालिक 

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