नजर तेरी श्रृंगार है मेरा
फिर क्यों हल्दी उबटन लगाऊ मैं ,
जब मिले तुमसे नजरें ओ मेरे साजन
यूँ ही निखर जाऊँ मैं ।
बिखरी-बिखरी ज़ुल्फें ही तो मेरी
तुमको अच्छी लगती हैं ,
बंध कर मेरी जान कहो, कब महोब्बत संवरती है ।
बिखरी हुई ये ज़ुल्फें तेरी, मेरे कानो मैं कुछ कहती रहें ,
गुदगुदाते हुए कान मेरे ख्वाहिशें तेरी समझते रहें ,
गजरे की महक नहीं तुम
अपने तन की खुशबू लाओ ,
श्रृंगार की तुम जद्दोजहद छोडो
मेरा इश्क़ को पहन कर आओ
मुझको अपना श्रृंगार बनाओ तुम
मेरी हो, मेरी बनकर आओ तुम ।
------- मुक्ता भावसार
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