मैंने कई सालों से बांध रखा है उम्मीद का एक धागा
तुम्हारे प्रेम की डोर से ,
ना तो उस धागे में ज्यादा कसावट रखी
कि कभी टूट जाने का डर लगे
और ना ही इतना ढीला छोड़ा कभी ,
कि एहसास ही ख़त्म हो जाए मेरे होने का ।
बस बांध रखा है संतुलित सा
ताकि मन के किसी कौने में उम्मीद बंधी रहे
ख्वाहिशों के सच होने की ,
सपनों के खाली केनवास में
प्रेम रंग के बिखर जाने की ,
ना जाने कितनी ही दफा तुझे पाने के लिए दुआ में हाथ उठाए
उन दुआओं के कबूल होने की ,
चारदीवारी में कैद है जो इश्क़
उस इश्क़ के मुक़म्मल होने की ,
दो जिस्म जो बंटे हुए
समाज की बंदिशो में
धर्म और रीतियों की बेड़ियो में
दो रूह जो कभी बिछड़ी नहीं
उनके एक होने की ।
बस मेरी उम्मीद का ये धागा टूटे नहीं
बस मेरी उम्मीद का ये धागा कभी टूटे नहीं ।
------- मुक्ता भावसार
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