खुद से हर दिन उलझती रही
बस तेरे इश्क़ के खातिर ,
मेरा इश्क़ मासूम रहा सदा
तेरा ज़माना निकला शातिर ,
जमाने ने समझाया तुझे
बातों से बहलाया तुझे
मैं तो थी मासूम बिलकुल
ना बहलाना आया मुझे
ना समझाना आया मुझे ,
मैं तन्हा लड़ रही थी
बस तेरे ही साथ के खातिर ,
मैंने चुना था तुम्हे मंजिल
तुमने बना दिया मुझे बस एक राहगीर
अब भटक रही हूँ , तड़प रही हूँ
बन कर तेरे इश्क़ की मुसाफ़िर ।
-------मुक्ता भावसार
बस तेरे इश्क़ के खातिर ,
मेरा इश्क़ मासूम रहा सदा
तेरा ज़माना निकला शातिर ,
जमाने ने समझाया तुझे
बातों से बहलाया तुझे
मैं तो थी मासूम बिलकुल
ना बहलाना आया मुझे
ना समझाना आया मुझे ,
मैं तन्हा लड़ रही थी
बस तेरे ही साथ के खातिर ,
मैंने चुना था तुम्हे मंजिल
तुमने बना दिया मुझे बस एक राहगीर
अब भटक रही हूँ , तड़प रही हूँ
बन कर तेरे इश्क़ की मुसाफ़िर ।
-------मुक्ता भावसार
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