मुझे कभी समझ नहीं आता कि जो जहाँ है, वो वहाँ क्यों है?
मैं अलग अलग तरह से रेज़्यूमे बनाकर कई जगह एप्लाई करता रहा हूँ। पर कभी कोई कॅाल नहीं आया। मेरा मतलब अभी तक नहीं आया है।
आगे की संभावना मैं कम ही मानकर चलता हूँ। शायद एक गलती ये भी है , संभावनाओं को नकारना।
अभी कुछ दिन पहले एक जगह नौकरी लगभग पक्की हो गई थी। पैसे भी ठीक देने पर बात हो गई थी। पर मैं वहाँ नहीं गया। दरअसल अगली सुबह उठकर जब जाने को तैयार हुआ तो लगा कि बस यही है सब।
यह कोई शुरूआत नहीं, ना ही मध्य। यह अंत है। अब से हर रोज यही अन्त मुझे जीते रहना है। मैं यह सब सोचता हुआ गया और कैंटीन से खाना खाकर लौट आया। मैनें कई बार ऐसा किया है। मैं जाता हूँ और बीच से ही लौट आता हूँ।
मैं निकलता हूँ और कहीं नहीं पहुँचता , मैं लौटता हूँ और कहीं नहीं पहुँचता मैं ना सफर में हूँ, ना मोड़ पर, ना गंतव्य पर।
"आखिर प्रोब्लम क्या है?", वो बोलीं।
"कहीं अच्छे नम्बर चाहिए, तो कहीं कुछ बात", मैनें कहा।
------ चिराग़ शर्मा
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