मैं हमेशा से बनना चाहती थी
निर्भय, आजाद, बेफिर्क, स्वतन्त्र ।
पर मुझे डराया गया
समाज की मर्यादाऔं से
बांधा गया असंख्य अनचाहे रिश्तों में ,
रोका गया मुझे संस्कारों के नाम पर
टोका गया मेरी बेबाकी पर ।
छीन लिया हक खुली हवा में सांस लेने का
दबा दी गयी आवाज हजारों अधिकार देकर
और दी गयी नसीहत कि
तुम्हे समझना होगा अपना किरदार
निभानी होगी भूमिका महज एक कठपुतली बनकर ।
क्योंकि तुम एक बेटी हो
क्योंकि तुम एक प्रेमिका हो
क्योंकि तुम एक पत्नी हो
क्योंकि तुम बंदिनी हो अपने कर्तव्यों की
क्योंकि तुम नाम हो मर्यादा, सर्मपण और त्याग का
क्योंकि तुम सदा से बंधनों में जकडी हुई हो
क्योंकि तुम एक स्त्री हो ।
निर्भय, आजाद, बेफिर्क, स्वतन्त्र ।
पर मुझे डराया गया
समाज की मर्यादाऔं से
बांधा गया असंख्य अनचाहे रिश्तों में ,
रोका गया मुझे संस्कारों के नाम पर
टोका गया मेरी बेबाकी पर ।
छीन लिया हक खुली हवा में सांस लेने का
दबा दी गयी आवाज हजारों अधिकार देकर
और दी गयी नसीहत कि
तुम्हे समझना होगा अपना किरदार
निभानी होगी भूमिका महज एक कठपुतली बनकर ।
क्योंकि तुम एक बेटी हो
क्योंकि तुम एक प्रेमिका हो
क्योंकि तुम एक पत्नी हो
क्योंकि तुम बंदिनी हो अपने कर्तव्यों की
क्योंकि तुम नाम हो मर्यादा, सर्मपण और त्याग का
क्योंकि तुम सदा से बंधनों में जकडी हुई हो
क्योंकि तुम एक स्त्री हो ।
----मुक्ता भावसार
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