Monday, 8 August 2016

हालात इतने बुरे नहीं थे !

हालात इतने बुरे नहीं थे जितना हमको लगा करता था , जब भी खिड़की से बाहर देखता था तो यही लगता था क़ि बाहर निकलते ही मारा जाऊँगा हो सकता है मारा भी जाता , लेकिन सारी ज़िन्दगी एक कमरे में तो नहीं गुजारी जा सकती |

हालात इतने बुरे नहीं थे , ना ही हम पहाड़ों पर सोते थे ना ही पत्थरों पर । जैसा के दूर किसी देश् में भूकंप आने से या बम फटने पर होता है । नहीं आज कहीं बम नहीं फटा , हो भी सकता है फटा हो मगर मुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता । मुझे कभी कभी लगता है यहाँ कोई बम फट जाए या भूकंप आ जाये या कुछ भी ऐसा हो जाए के हम अपने घरों से निकलने पर मजबूर हो जाएँ ।  फिर शायद हम सब एक साथ कही टेन्ट लगा कर रहेंगे । मैं हमेशा से यहाँ से बाहर निकलना चाहता था , हालाँकि निकल भी सकता था , पर मैं किसी चमत्कार के इंतज़ार में था जो कि कभी नहीं हुआ |

 हो सकता है की बम या भूकंप से हम मारे भी जाएँ , उसके बाद क्या होगा किसी को नहीं पता , तो हम ज़िंदा बच जाने पर साथ रहने के बारे में ही सोचते हैं।


चमत्कार हो सकता था , पर शायद नहीं हुआ , इसमें दोष किस का है !


                        ---- ब्लॉग मालिक 

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