हालात इतने बुरे नहीं थे
जितना हमको लगा करता था , जब भी खिड़की से बाहर देखता था तो यही
लगता था क़ि बाहर निकलते ही मारा जाऊँगा ,
हो सकता है मारा भी जाता , लेकिन सारी
ज़िन्दगी एक कमरे में तो नहीं गुजारी जा सकती |
हालात इतने बुरे नहीं थे , ना ही हम पहाड़ों पर सोते थे ना ही पत्थरों पर । जैसा के दूर किसी देश् में
भूकंप आने से या बम फटने पर होता है । नहीं आज कहीं बम नहीं फटा , हो भी सकता है फटा हो मगर मुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता । मुझे कभी कभी
लगता है यहाँ कोई बम फट जाए या भूकंप आ जाये या कुछ भी ऐसा हो जाए के हम अपने घरों
से निकलने पर मजबूर हो जाएँ । फिर शायद हम
सब एक साथ कही टेन्ट लगा कर रहेंगे । मैं हमेशा से यहाँ से बाहर निकलना चाहता था ,
हालाँकि निकल भी सकता था , पर मैं किसी
चमत्कार के इंतज़ार में था जो कि कभी नहीं हुआ |
हो सकता है की बम या भूकंप से हम मारे भी जाएँ , उसके बाद क्या होगा किसी को नहीं पता , तो हम ज़िंदा बच
जाने पर साथ रहने के बारे में ही सोचते हैं।
चमत्कार हो सकता था , पर शायद नहीं हुआ , इसमें दोष किस का है !
---- ब्लॉग मालिक
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