माना कि तुम्हारी हथेली में
पच्छिम नहीं है, एक लक़ीर अमावस की क्यूँ हरदम चलती रहती है ?
एक काम करोगी आज...
गहरे गले का ब्लाउज़ वो नीला
वाला पहनो, जिस पर पीठ तुम्हारी आधे चाँद सी झिलमिल करती है| लम्बा-सा स्कर्ट वो
पीला रेशम-रेशम, जिसकी हद पे सरसों की बाली फूला करती है| हरे रंग
के कंगन पहनो, फ़ोन पे उनकी खन-खन भेजो | कानों में वो आगरा वाले लटकन पहनो, शाहजहाँ
की बेतरतीब सी धड़कन पहनो | माँग में गीली शबनम पहनो, कमर में सारे मौसम पहनो |
कच्चा कोयला सीने में फिर से
सुलगाओ, धुआँ-धुआँ काजल से तुम बादल बन जाओ | सिर के ऊपर कड़ी धूप है, मेरे शहर में
बड़ी धूप है| हँसी की बूँदें छम छम भेजो , इन्द्रधनुष और सरगम भेजो|
जैसे लापरवाही से तुम बाल
झटकती हो,
हौले से बस! वैसे ही वो बात झटक दो |
ब्लाउज़ के नीचे काँच रंग की
जो डोरी है, ज़रा-सा नीचे सरकाओ ? चटक
-मटक रंगों में तुम नाखून डुबाओ | बायीं तरफ़ हँसली पर जानाँ, हँसते
सूरजमुखी उगाओ |
जिस्म- जान सब रौशन-रौशन कर
जाएगा, काँधे पे डूब के सूरज आज ही मर जाएगा |
[ सूरजमुखी ]
- Baabusha Kohli
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