Friday 26 August 2016

एक इतवार

"कितनी मशीनी हो गयी है न ज़िंदगी। रोज़ वही ऑफ़िस जाओ रोज़ वही ऑफ़िस से आओ। चाह कर भी हम कुछ अलग नही कर पाते। स्कूल-कॉलेज के दिनों में देश को बदल देंगे, समाज में क्रांति ले आएँगे और न जाने कितने हीं ख़्वाब पलकों में खेला करते थे। अब तो बस ऑफ़िस, प्रमोशन, इंक्रेमेंट इसी में ज़िंदगी उलझ गयी है।

हर इतवार के लिए सोचता हूँ आज कुछ नया करूँगा, मगर इतवार भी कपड़े धोने, हफ़्ते भर के सामान को जुटाने और सोने में निकल जाता है।जो थोड़ा-बहुत टाइम बचता है वो ये फ़ोन और फ़ेस्बुक ले लेता है। कभी सोचता हूँ तो लगता है, कितनी उलझ गयी ज़िंदगी या खो गयी है।"
डायरी लिख हीं रहा था कि कुछ आवाज़ सुनाई दी, खिड़की से झाँक कर देखा तो पीछे स्लम वाले बच्चे आपस में लड़ रहे थे किसी बात को लेकर। खिड़की बंद की और बिस्तर पर आ कर लेट गया।
सुबह मेड ने डोर-बेल बजाया तो नींद खुली। दरवाज़ा खोल कर फटाफट तैयार होने चला गया। मेड ने पूछा भी साहब आज तो इतवार है, फिर किस बात की जल्दी है। उसने कमरे में से हीं जवाब दिया,
"जल्दी है मौसी, जीने की जल्दी है ज़िंदगी को, ख़्वाबों को।
तुम बस पोहा और चाय बना दो। खाना बाहर खाऊँगा।"

मौसी बोली हँसते हुए बोली, "दीदी से लड़ाई हो गया फिर से। वो आप क्या कहते हो ब्रेक-अप।" वो भी मुस्कुराता हुआ तैयार हो कर बैग में कुछ-कुछ भर लिया।
नाश्ता करके चुप-चाप अपनी मेड के साथ घर से निकला और स्लम की तरफ़ बढ़ने लगा। मौसी बोली "इधर क्यूँ जा रहे हो भईया ?"
"कुछ खो गया है, उसी को ढूँढने।" कहते हुए वो स्लम में दाख़िल हो गया। इतवार था तो बच्चे झुंड बना कर इधर-उधर खेल रहे थे, भीमराव के मंदिर के आस-पास। वो भी वही जा कर बैग रखा, फिर एक-एक करके बच्चों को आवाज़ लगायी। कुछ बच्चें आए कुछ खेलने में ही मशगूल रहें।
फिर उसने बैग खोला और पेपर, पेंसिल और कुछ क्रेयोंस बॉक्स में डाल कर रखा। बच्चों को पहले देर तक कहानियाँ सुनाईं अपने बचपन की जो वो अपनी दादी से सुना था। बाद में उन कहानियों के पात्रों को बच्चों के साथ मिलकर पेपर पर आकार देने लगा। टेढ़े-मेढ़े, आरे-तीरछे हाथी-घोड़ा, परी-राक्षस और न जाने क्या-क्या मंदिर के चबूतरों पर उतर रहे थे। मन में अजीब शांति थी जो शायद हीं किसी इतवार को महसूस किया था पहले उसने।

और उस रात को डायरी में अपने ख़्वाबों को लिख कर क़ैद करने की ज़रूरत महसूस नही हुई, क्यूँकि उसने उन्हें जीने के लिए एक रास्ता जो चुन लिया था।


                                                                           --------- अनु रॉय

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