Tuesday 2 August 2016

मुझे थकान पसंद है

क्या उस शहर के लोग अब भी मेरे बारे में सवाल करते थे ?
मुझे थकान पसंद है !
शायद इसलिये क्योंकि यह आसान है |
थकान मौका नहीं देती मुझे ख़ुद से सवाल करने का ,
बेशक यह सुकून नहीं देती, लेकिन यकीन मानो थकान आपको मौका भी नहीं देती फिर से उन बेचैनियों को जीने का , वो बेचैनियाँ जिसमें ना रोया गया और ना ही चैन से सोया गया |
जहाँ सुनाने वाला कोई ना था
ना ही कुछ कहने को बचा था
अँधेरी रातें थीं , और ठहरे हुए वक़्त की घबराहट |
दम घोटती हसरत और ख़त्म होती चाहत |
शायद इसीलिए चुनी मैंने कभी ना ख़त्म होने वाली थकावट |
अब गहरे सवाल नहीं उठते
सोये जज़्बात नहीं जागते
ख़ुद से ख़ुद को मिलने का वक़्त नहीं मिलता |
और ना ही अब ख़ुद से भागते हैं |
मुझे पसंद है बेहद यह थकावट और
यह थकावट भरी रातें |     



                     ---- मुक्ता भावसार 

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