क्या उस शहर के लोग अब भी
मेरे बारे में सवाल करते थे ?
मुझे थकान पसंद है !
शायद इसलिये क्योंकि यह आसान
है |
थकान मौका नहीं देती मुझे
ख़ुद से सवाल करने का ,
बेशक यह सुकून नहीं देती,
लेकिन यकीन मानो थकान आपको मौका भी नहीं देती फिर से उन बेचैनियों को जीने का , वो
बेचैनियाँ जिसमें ना रोया गया और ना ही चैन से सोया गया |
जहाँ सुनाने वाला कोई ना था
ना ही कुछ कहने को बचा था
अँधेरी रातें थीं , और ठहरे
हुए वक़्त की घबराहट |
दम घोटती हसरत और ख़त्म होती
चाहत |
शायद इसीलिए चुनी मैंने कभी ना
ख़त्म होने वाली थकावट |
अब गहरे सवाल नहीं उठते
सोये जज़्बात नहीं जागते
ख़ुद से ख़ुद को मिलने का वक़्त
नहीं मिलता |
और ना ही अब ख़ुद से भागते
हैं |
मुझे पसंद है बेहद यह थकावट
और
यह थकावट भरी रातें |
---- मुक्ता भावसार
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