मैंने आईना बदलने को कहा था तुमने शख्स ही बदल दिया
अगर एक लम्बे अरसे
बाद फ़ोन स्क्रीन पर
वो नाम नजर
आए जिससे आपका गहरा
नाता रहा हो
, लेकिन अब वो शख्स
आपकी जिंदगी में महज़
ख़ामोशी से सिवा
कुछ नहीं रहा | ख़ामोशी भी इसलिए क्योंकि जब
कोई नहीं होता
तो अकसर आप
उसी से बात
करते हैं | चाहे तकलीफ हो या
दिल को तसल्ली देने
वाली कोई बात
| वैसे भी ख़ामोशी से बातें करना
सबसे बेहतर है , वो
आपकी हर बात
सुनती है बिना
किसी शिकायत और सलाह
के |
करीब 1 साल और
कुछ ही महीने हुए
होंगे , अविका और आदित्य के
बीच फासलों को आए
हुए | अपनी मोबाइल स्क्रीन पर आदित्य का
नाम देख कर
अविका
चौंक गयी | दिल जोर-जोर
से धड़क रहा
था | हाथों में इतनी
हिम्मत नहीं आ
रही थी कि
फ़ोन रिसीव कर सके
| हाथों में मोबाइल भी उतना
ही भारी लग
रहा था , जितना की
दिल था | शंकाओं और
उम्मीदों से लबरेज दिल
| आखिरकार उसे मेरी याद
आ ही गयी
, मेरी उम्मीद का धागा
आज सार्थक हो गया
है , मेरे जीत
हो गयी , वो
मुझे फिर बुलाना चाहता है
अपनी ज़िन्दगी में | उम्मीदों से
भरा दिल अचानक शंकाओं में
तबदील हो जाता
है , कही कोई
अनहोनी तो नहीं
हुई , अगर कोई
अच्छी खबर सुनानी होती
तो वो रात
तक इंतजार कर लेता
| हे ईश्वर ! सब कुछ
कुशल मंगल हो | डर और
उम्मीद के साथ
अविका फ़ोन रिसीव करती
है | जब फ़ोन
किसी ऐसे शख्स
का हो जहाँ
औपचारिकता की कोई
जगह नहीं हो
तो HELLO
और
Hi की जगह सीधे
दिल के जज्बात ही
निकलते हैं |
यही हुआ
, अविका का पहला सवाल
सब ठीक तो
है ? आदित्य के जवाब
ने राहत दी
हाँ सब ठीक
है |
अविका - आज इतने
महीनों बाद , कहो तो
साल, महीने, दिन और
घंटों का हिसाब करके
बता दूँ और
फिर पूछा कैसे
याद आयी ?
आदित्य- तुम बिलकुल नहीं
बदल सकीं आपने
आप को |
अविका- अगर बदल
देती तो कैसे
रहती तुम्हारी अविका , खैर छोड़ो
मेरी बेमतलब की बातें तुम
सुनना कब पसंद
करते हो , कहो
कैसे याद किया
?
आदित्य - कुछ कहना था
, या ये कि कुछ
बताना चाहता था | मैंने
अपनी ज़िन्दगी का फैसला ले
लिया है | शादी तय हो
गयी है मेरी
, लड़की इंजीनियर है | नाम
है निशा |
अविका को ऐसा
लगा जैसे भूकंप आया
हो और अब
बचने की कोई
उम्मीद नहीं है |
मानो बस एक
ही रास्ता बचा हो
ज़िन्दगी को मौत
के हवाले कर दो
और अपने अंत
के खुद गवाह
बनो | लेकिन फिर भी
जुबान से लफ्ज़
बिखेरने की हिम्मत जुटाते हुए
अविका कहती है
अविका - मुबारक हो |
आदित्य- मुझे लगता
है तुम्हें भी ज़िन्दगी में
आगे बढ़ जाना
चाहिए | ज़िन्दगी वैसे भी
चलने का ही
नाम है |
(अविका कुछ कहती
नहीं पर खुद
ही को जवाब
देती है | अगर
ज़िन्दगी आगे बढ़ने
का ही नाम
है तो फिर
मैं तनहाई के साथ
आगे बढ़ूँगी | तुम्हारी जितनी कमजोर नहीं जो
किसी के सहारे की
जरूरत महसूस हो | तुम
हमेशा से कायर
थे | पहले दुनिया के
डर से मेरा
हाथ छोड़ा और
अब अपनी तनहाई के
डर की वजह
से किसी का
हाथ थाम रहे
हो | खैर किसी
जिस्म की जरूरत हो
मुझे अपनी ज़िन्दगी को
आगे बढ़ाने के लिए
ऐसा नहीं है
मेरे साथ | जब
अविका के मन
की शिकायतों और सवालों पर
लगाम लगी तो
अचानक ही उसके
मुँह से निकल
गया )
अविका - कभी कुछ
नहीं मांगा , सब कुछ किया
जो तुमने चाहा पर
आज कुछ मांगूँगी दे
देना | डरो मत
तुम्हारे दायरे में ही
मांगूँगी , जानती हूँ मेरी
ख्वाहिशों के जितना देना
इतनी तुम्हारी औकात नहीं
|
आदित्य- मैं अपने गुनाहों की
माफ़ी मांग चुका
हूँ
मांगो किस तरह अपने
गुनाहों को थोड़ा
कम कर सकता
हूँ |
अविका - मुझे मिलना है तुमसे एक
आखिरी बार और
सच में अब
ये हमारी आखिरी मुलाक़ात होगी | इसके
बाद ना मैं
उम्मीद करूंगी और ना
ही तुम अपने
so
called
समाज के चश्मे से
बाहर निकल कर
मुझसे मिलोगे , एक दोस्त की
तरह भी कभी
नहीं | वैसे भी
महबूब की आँखों में
इश्क़ ही नजर
आता है |
आदित्य - शायद यही
दे सकता हूँ
तुम्हें कब और
कहाँ मिलना चाहती हो |
अविका - उन्हीं चार दीवारों के
बीच जहां तुमने मुझे
जमाने से छिपा
कर हजारों झूठे सपने
दिखाए , और हिम्मत एक
शब्द सच कर
दिखाने की ना
थी |
आदित्य - क्यों मिलना चाहती हो वहां, हम कहीं और
भी तो मिल
सकते है |
अविका - लेकिन में वहीं
मिलना चाहती हूँ ,चाहो तो
मना भी कर
सकते हो , मुझे इनकार सुनने की
आदत है, ये तुमसे बेहतर कौन
जानता होगा | आज
मेरे पास कहने
को बहुत कुछ है और
तुम खामोश हो | गुनाहगार अकसर
खामोश ही तो
होता है |
आदित्य - इस इतवार आ
जाना, शायद यही
कर पाऊंगा , इसलिए कर रहा
हूँ
| बस एक वादा
करो मुझे कमजोर नहीं
करोगी |
अविका - अजीब
हो तुम, तोड़ा तुमने मुझे
है और कमजोर भी
तुम पड़ोगे, मजाक अच्छा था, फिर भी कोशिश करूंगी |
इतवार के दिन
अविका आदित्य के उस
घर में मिलने गयी
जिसका कोना-कोना
उन दोनों के इश्क़
की गवाही देता है
| खूँटी पर लटकी टी-शर्ट जिसमें अविका ने ना
जाने कितनी तस्वीरें लीं , कॉफ़ी का वो
कप जो अविका ने
उसे न्यू ईयर
पर दिया , वो
कढ़ाई जिस पर
कई बार हजारों ख्वाहिशें पकाई
गयी | वो बिस्तर पर जिस
पर कई बार
ख्वाब बुने गए
| अपने सपनों के घर
का होगा , हम
एक कमरा अपनी
तस्वीरों से सजाएंगे , जैसे
कई सपने जो
कभी सच नहीं
हुए | हाँ और बेहद
खूबसूरत आईना भी
| अविका कमरे में जाती
है और आदित्य को
बिना ध्यान से देखे
, बिना निहारे , कमरे में
घुस जाती है
, जैसे इस बार वो
आदित्य से मिलने आयी
ही ना हो
| उसे आदित्य से कुछ
कहना ही ना
हो , वो तो
बस यादों के उस
कमरे को देखने आयी
थी , जो उसके
लिए अब जीने
का सहारा था | बस
एक ही वाक्य कहा
था उसने उस
वक़्त आदित्य से , क्या कुछ सामान ले
जा सकती हूँ
| आदित्य भी बस हाँ
की कह पाया
, शायद समझता था
अविका क्या सोचती है
| फिर एक आईने के
सामने अविका लगभग पांच
मिनट खड़ी रहती
है , और फिर
सवाल
अविका - तुमने वो छोटा
सा आईना हटा
दिया क्या ?
आदित्य - हाँ क्यों ?
अविका - नहीं वो
आईना मुझे कभी
पसंद नहीं था
, मेरी हाइट कम पड़
जाती है, मैं
खुद को देख
ही नहीं पाती
और हमेशा मुझे तुम्हें आवाज़
लगानी पड़ती थी
|
आदित्य – हाँ
, बेहद अच्छे से याद
है मैं भुला कुछ
नहीं, बस तुम्हारी तरह
संजो कर नहीं
रख पाऊंगा , तो अब तुम
खुश हो आईना
बदल गया |
अविका - नहीं मैं
खुश नहीं , मुझे हर वो
आईना पसंद है
, जिसमे हम एक नजर
आते थे | चाहे
वो तुम्हारी बाइक के
आगे वाला मिरर
हो या वो
छोटा सा आईना
| वो ही दो आईने
थे जिसमें मैंने तुम्हें हमेशा अपने साथ
देखा था | तुम
मुझे कभी समझ
ही नहीं पाए
| मैंने तुम्हें आईना इसलिए बदलने को
कहा था कि
उस बड़े आईने
में तुम्हें और मुझे
एक साथ पूरा
देख सकूँ | सर
से लेकर पैर
तक , ताकि जान
सकूँ हम एक
साथ कितने अच्छे लगते हैं | मेरी हाइट
तुमसे कितनी कम है
| कितनी हील की सैंडिल खरीदनी है
ये सब पता
कर सकूँ | मैंने तुमने आईना बदलने को
कहा था , तुमने तो
शख्स ही बदल
दिया | और उस
पर तुम्हारा सितम तो
देखो , कहा शिकायत नहीं
करना कभी | अब
इस आईने में
और तुम्हारी ज़िन्दगी में मेरी
कोई जगह नहीं
, मगर ध्यान रखना कभी-कभी इस आईने
में तुम्हें तुम्हारी गलतियाँ भी नजर
आएगी | मैं आज
तुमसे नहीं फिर
से उन लम्हों से
मिलने आयी थी
| उस आईने में सच्चाई देखने आयी
थी | अब तुम
मुझे कभी उस
आईने में मेरे
साथ नजर नहीं
आओगे |
आदित्य - अविका हालात मेरे बस
में कभी थे
ही नहीं |
अविका - ऐसा कभी
नहीं था की
हमारी नियति एक नहीं
थी | हाथों की लकीरे साथ
होने से इनकार कर
रही थीं | हमारी नियति तो थी
पर तुम्हारी नीयत नहीं
, वरना तुम कब जमाने के
हिसाब से चले
थे |
बस अब
जाना चाहती हूँ , तुम्हारी इस
दुनिया से दूर
, कुछ कहना तो नहीं
तुम्हें
?
आदित्य - नहीं कुछ नहीं
कहना , बस यही
कि माफ़ कर
दो |
अविका - माफ़ कर
दिया |
आदित्य - बोलो कहा
छोड़ना है तुम्हें में
छोड़ देता हूँ ,ऑटो से
जाना पड़ेगा वरना |
अविका - छोड़ तो
तुमने काफी समय
पहले ही दिया
था | बाय
दिल में हजार
उलझनों के साथ
अविका निकल जाती
है अपने तन्हा सफर में, वो सच
में नहीं जानती थी
उस दिन उसे
कहा जाना था
| बस खुद को समझाने के
लिए तनहाई चाहिए थी वो चाहे
कहीं भी मिल
जाए
|
----- मुक्ता भावसार