Sunday, 26 February 2017

अधूरा इश्क़ - मुक्ता

मैं लिखती रही,मिटाती रही
अधूरे इश्क़ की ख्वाहिशें,
कितने ही दिन तन्हा बीते
कितनी ही रातें तन्हा जीए,
दीवारों से दिल का दर्द कहे
छत से करें शिकायतें ,
काली घनी रात आकर नींद से मेरे कहे
आँख बंद कर ले ओ बावरी ! पिया तुझे तेरे भूल गए
चल तुझे निन्दियाँ बुलाएँ
ख्वाब कुछ नए दिखाएँ,

उस बावरी का जी ना माना
कहा, सारी रात जागेगी ये अँखियाँ मेरी
पिया ही है ख्वाब मेरे
पिया ही है निन्दियाँ मेरी  ।


                ------ मुक्ता भावसार 

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