कैसा हो गर
हम सब गूँगे हो
जाएं
ख़ामोशी ही कहें
और ख़ामोशी ही सुन
पाएं
क्योंकि मेरे हिसाब से
ख़ामोशी लोगों को एक
कर देती है
,
ठीक उसी तरह
जैसे रात में सारे भेद मिटा
देती है
दूरियां ख़त्म हो
जाती है और
सब करीब हो
जाते है ,
रौशनी आते ही सब
को अलग-अलग
कर देती है
ठीक वैसे ही
बोलने पर भी
लोग बट जाते
है ,
हम बोलेंगे तो अपना
नाम बताएंगे और फिर
जातियों में बट
जाएंगे
|
बातचीत का सिलसिला जब
आगे बढ़ेगा, हम शहर
और संस्कृति की बात
करेंगे
और फिर हम
क्षेत्र और धर्मों में
तोड़ दिए जाएंगे ,
कभी जब मुश्किल होगा
समझना बलियों को, हम
भाषा में विभाजित हो
जाएंगे
इसलिए बेहतर है हम
फिर खामोशी में बात
करें
ताकि हम बाटे
ना जा सके
धर्म,जाति और
क्षेत्रों में ,
जब पूछा जाए
कौन हो ? तो
दिखा सकें
उंगलियों से हिंदुस्तान का
नक्शा !
और बता सकें
यही है हमारी पहचान
हमारी एकता |
-----मुक्ता भावसार
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