Friday, 27 January 2017

छोटा सा आईना - मुक्ता

मैंने आईना बदलने को कहा था तुमने शख्स ही बदल दिया 

अगर एक लम्बे अरसे बाद फ़ोन स्क्रीन पर वो नाम नजर आए जिससे आपका गहरा नाता रहा हो , लेकिन अब वो शख्स आपकी जिंदगी में महज़ ख़ामोशी से सिवा कुछ नहीं रहा  | ख़ामोशी भी इसलिए क्योंकि जब कोई नहीं होता तो अकसर आप उसी से बात करते हैं | चाहे तकलीफ हो या दिल को तसल्ली देने वाली कोई बात | वैसे भी ख़ामोशी से बातें करना सबसे बेहतर है , वो आपकी हर बात सुनती है बिना किसी शिकायत और सलाह के |

करीब 1 साल और कुछ ही महीने हुए होंगे , अविका और आदित्य के बीच फासलों को आए हुए  | अपनी मोबाइल स्क्रीन पर आदित्य का नाम देख कर अविका चौंक गयी | दिल जोर-जोर से धड़क रहा था | हाथों में इतनी हिम्मत नहीं रही थी कि फ़ोन रिसीव कर सके | हाथों में मोबाइल भी उतना ही भारी लग रहा था , जितना की दिल था | शंकाओं और उम्मीदों से लबरेज दिल | आखिरकार उसे मेरी याद ही गयी , मेरी उम्मीद का धागा आज सार्थक हो गया है , मेरे जीत हो गयी , वो मुझे फिर बुलाना चाहता है अपनी ज़िन्दगी में | उम्मीदों से भरा दिल अचानक शंकाओं में तबदील हो जाता है , कही कोई अनहोनी तो नहीं हुई , अगर कोई अच्छी खबर सुनानी होती तो वो रात तक इंतजार कर लेता | हे  ईश्वर ! सब कुछ कुशल मंगल हो | डर और उम्मीद के साथ अविका फ़ोन रिसीव करती है | जब फ़ोन किसी ऐसे शख्स का हो जहाँ औपचारिकता की कोई जगह नहीं हो तो HELLO और Hi  की जगह सीधे दिल के जज्बात ही निकलते हैं | 

यही हुआ , अविका का पहला सवाल सब ठीक तो है ? आदित्य के जवाब ने राहत दी हाँ सब ठीक है |
अविका - आज इतने महीनों बाद  , कहो तो साल, महीने, दिन और घंटों का हिसाब करके बता दूँ और फिर पूछा कैसे याद आयी ?
आदित्य- तुम बिलकुल नहीं बदल सकीं आपने आप को |
अविका- अगर बदल देती तो कैसे रहती तुम्हारी अविका , खैर छोड़ो मेरी बेमतलब की बातें तुम सुनना कब पसंद करते हो , कहो कैसे याद किया ?
आदित्यकुछ कहना था , या ये कि कुछ बताना चाहता था |  मैंने अपनी ज़िन्दगी का फैसला ले लिया है | शादी तय हो गयी है मेरी , लड़की इंजीनियर है | नाम है निशा |
अविका को ऐसा लगा जैसे भूकंप आया हो और अब बचने की कोई उम्मीद नहीं है | मानो बस एक ही रास्ता बचा हो ज़िन्दगी को मौत के हवाले कर दो और अपने अंत के खुद गवाह बनो | लेकिन फिर भी जुबान से लफ्ज़ बिखेरने की हिम्मत जुटाते हुए अविका कहती है
अविका - मुबारक हो |
आदित्य- मुझे लगता है तुम्हें भी ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाना चाहिए | ज़िन्दगी वैसे भी चलने का ही नाम है |

(अविका कुछ कहती नहीं पर खुद ही को जवाब देती है | अगर ज़िन्दगी आगे बढ़ने का ही नाम है तो फिर मैं तनहाई के साथ आगे बढ़ूँगी | तुम्हारी जितनी कमजोर नहीं जो किसी के सहारे की जरूरत महसूस हो | तुम हमेशा से कायर थे | पहले दुनिया के डर से मेरा हाथ छोड़ा और अब अपनी तनहाई के डर की वजह से किसी का हाथ थाम रहे हो | खैर किसी जिस्म की जरूरत हो मुझे अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाने के लिए ऐसा नहीं है मेरे साथ | जब अविका के मन की शिकायतों और सवालों पर लगाम लगी तो अचानक ही उसके मुँह से निकल गया )

अविका - कभी कुछ नहीं मांगा , सब कुछ किया जो तुमने चाहा पर आज कुछ मांगूँगी दे देना | डरो मत तुम्हारे दायरे में ही मांगूँगी , जानती हूँ मेरी ख्वाहिशों के जितना देना इतनी तुम्हारी औकात नहीं |
आदित्यमैं अपने गुनाहों की माफ़ी मांग चुका हूँ मांगो किस तरह अपने गुनाहों को थोड़ा कम कर सकता हूँ |
अविकामुझे मिलना है तुमसे एक आखिरी बार और सच में अब ये हमारी आखिरी मुलाक़ात होगी | इसके बाद ना मैं उम्मीद करूंगी और ना ही तुम अपने so called समाज के चश्मे से बाहर निकल कर मुझसे मिलोगे , एक दोस्त की तरह भी कभी नहीं | वैसे भी महबूब की आँखों में इश्क़ ही नजर आता है |
आदित्य - शायद यही दे सकता हूँ तुम्हें कब और कहाँ मिलना चाहती हो |
अविका - उन्हीं चार दीवारों के बीच जहां तुमने मुझे जमाने से छिपा कर हजारों झूठे सपने दिखाए , और हिम्मत एक शब्द सच कर दिखाने की ना थी |
आदित्य - क्यों मिलना चाहती हो वहां, हम कहीं और भी तो मिल सकते है |
अविका - लेकिन में वहीं मिलना चाहती हूँ ,चाहो तो मना भी कर सकते हो , मुझे इनकार सुनने की आदत है, ये तुमसे बेहतर कौन जानता होगा | आज मेरे पास कहने को बहुत कुछ है और तुम खामोश हो | गुनाहगार अकसर खामोश ही तो होता है |
आदित्य - इस इतवार जाना, शायद यही कर पाऊंगा , इसलिए कर रहा हूँ  | बस एक वादा करो मुझे कमजोर नहीं करोगी |
अविका - अजीब हो तुम, तोड़ा तुमने मुझे है और कमजोर भी तुम पड़ोगे, मजाक अच्छा था, फिर भी कोशिश करूंगी |

इतवार के दिन अविका आदित्य के उस घर में मिलने गयी जिसका कोना-कोना उन दोनों के इश्क़ की गवाही देता है | खूँटी पर लटकी टी-शर्ट जिसमें अविका ने ना जाने कितनी तस्वीरें लीं , कॉफ़ी का वो कप जो अविका ने उसे न्यू ईयर पर दिया , वो कढ़ाई जिस पर कई बार हजारों ख्वाहिशें पकाई गयी | वो  बिस्तर पर जिस पर कई बार ख्वाब बुने गए | अपने सपनों के घर का होगा , हम एक कमरा अपनी तस्वीरों से सजाएंगे , जैसे कई सपने जो कभी सच नहीं हुए |  हाँ और बेहद खूबसूरत आईना भी | अविका कमरे में जाती है और आदित्य को बिना ध्यान से देखे , बिना निहारे , कमरे में घुस जाती है , जैसे इस बार वो आदित्य से मिलने आयी ही ना हो | उसे आदित्य से कुछ कहना ही ना हो , वो तो बस यादों के उस कमरे को देखने आयी थी , जो उसके लिए अब जीने का सहारा था | बस एक ही वाक्य कहा था उसने उस वक़्त आदित्य से ,  क्या कुछ सामान ले जा सकती हूँ | आदित्य भी बस हाँ की कह पाया , शायद समझता था अविका क्या सोचती है | फिर एक आईने के सामने अविका लगभग पांच मिनट खड़ी रहती है , और फिर सवाल
अविका - तुमने वो छोटा सा आईना हटा दिया क्या ?
आदित्य - हाँ क्यों ?
अविका - नहीं वो आईना मुझे कभी पसंद नहीं था , मेरी हाइट कम पड़ जाती है, मैं खुद को देख ही नहीं पाती और हमेशा मुझे तुम्हें आवाज़ लगानी पड़ती थी |
आदित्य हाँ , बेहद अच्छे से याद है  मैं भुला कुछ नहीं, बस तुम्हारी तरह संजो कर नहीं रख पाऊंगा , तो अब तुम खुश हो आईना बदल गया | 

अविका - नहीं मैं खुश नहीं , मुझे हर वो आईना पसंद है , जिसमे हम एक नजर आते थे | चाहे वो तुम्हारी बाइक के आगे वाला मिरर हो या वो छोटा सा आईना | वो ही दो आईने थे जिसमें मैंने तुम्हें हमेशा अपने साथ देखा था | तुम मुझे कभी समझ ही नहीं पाए | मैंने तुम्हें आईना इसलिए बदलने को कहा था कि उस बड़े आईने में तुम्हें और मुझे एक साथ पूरा देख सकूँ | सर से लेकर पैर तक , ताकि जान सकूँ हम एक साथ कितने अच्छे लगते हैं | मेरी हाइट तुमसे कितनी कम है | कितनी हील की सैंडिल खरीदनी है ये सब पता कर सकूँ | मैंने तुमने आईना बदलने को कहा था , तुमने तो शख्स ही बदल दिया | और उस पर तुम्हारा सितम तो देखो , कहा शिकायत नहीं करना कभी | अब इस आईने में और तुम्हारी ज़िन्दगी में मेरी कोई जगह नहीं , मगर ध्यान रखना कभी-कभी इस आईने में तुम्हें तुम्हारी गलतियाँ भी नजर आएगी | मैं आज तुमसे नहीं फिर से उन लम्हों से मिलने आयी थी | उस आईने में सच्चाई देखने आयी थी | अब तुम मुझे कभी उस आईने में मेरे साथ नजर नहीं आओगे |

आदित्य - अविका हालात मेरे बस में कभी थे ही नहीं |
अविका - ऐसा कभी नहीं था की हमारी नियति एक नहीं थी | हाथों की लकीरे साथ होने से इनकार कर रही थीं | हमारी नियति तो थी पर तुम्हारी नीयत नहीं , वरना तुम कब जमाने के हिसाब से चले थे

बस अब जाना चाहती हूँ , तुम्हारी इस दुनिया से दूर , कुछ कहना तो नहीं तुम्हें ? 
आदित्यनहीं कुछ नहीं कहना , बस यही कि माफ़ कर दो |
अविका - माफ़ कर दिया |
आदित्य - बोलो कहा छोड़ना है तुम्हें में छोड़ देता हूँ ,ऑटो से जाना पड़ेगा वरना |
अविका - छोड़ तो तुमने काफी समय पहले ही दिया था | बाय
दिल में हजार उलझनों के साथ अविका निकल जाती है अपने तन्हा सफर में, वो सच में नहीं जानती थी उस दिन उसे कहा जाना था | बस खुद को समझाने के लिए तनहाई चाहिए  थी वो चाहे कहीं भी मिल जाए |

                                                                 ----- मुक्ता भावसार 




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