Tuesday, 24 January 2017

इश्क़ की अगन - मुक्ता

मेरे जज्बातों का एक छोर बंधा हुआ है
आज भी बीते हुए उन सालों से
जिनमें मोहब्बत जवान हुई थी ,
जिनमें इश्क़ की बात हुई थी  ,
कितनी सुबह तेरे पहलु में बीती
रातें भी तेरे साथ हुई थी ,

पर जब उतारती हूँ उस इश्क़ को पन्नों पर
और देखती हूँ कई दिनों बाद तो नजर आता है  
स्याही का रंग उड़ गया है ,
कागज़ों में सिलवटे आ गयी है ,
शब्द भी कुछ फीके नजर आ रहे हैं ,

मेरी लिखावट भी अब थोड़ी पक गयी है
लेकिन फिर भी तरोताजा है इश्क़ का एहसास ,
आज के दिन की सुर्खियों की तरह

सच कहा है किसी ने
शब्द कमजोर पड़ जाते हैं ,
स्याही भी साथ नहीं देती कभी
लिख नहीं पाती कलम भी दिल के सारे जज्बात ,
कहने को है बहुत कुछ पर साथ छोड़ देती है दवात
पर ज़िंदा रहती है दिल में सदा
धीमी-धीमी इश्क़ की आग ,
जो ना तो अब जलाती है
ना ही बन कर बैठी है तड़प ,
ना तो तुझसे कोई शिकायत ही बाकी रही
ना ही उम्मीद है कि हम मिल सकेंगे कभी ,
फिर क्यों सुलग रही है आज तक
मेरे सीने में तेरे इश्क़ की ये अगन ।

                        ------ मुक्ता भावसार


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