Monday, 17 October 2016

मैं बदल नहीं पाती - मुक्ता

मैं सब कुछ बदल देना चाहती हूँ
समाज की बुराइयों को
युवाओं की भटकती सोच को
महिलाओं के साथ हो रही असमानता को
अपने हक़ के लिए लड़ते ग़रीबों की स्थिति को
लेकिन फिर सोचती हूँ क्या यह संभव है ?
जवाब भी मिलता है हां संभव है
बस एक बार तुम्हें खुद को बदलना होगा
वक़्त देना होगा हर बदलाव के लिए
बलिदान देना होगा अपनी आराम पसंद सोच को
फिर में थक हार कर रात घर वापिस आती हूँ
और सो जाती हूँ अपनी इसी सोच के साथ
और उठ नहीं पाती उसी बदलाव के विचार के साथ
में कुछ भी बदल नहीं पाती

क्योंकि में खुद को नहीं बदलती हूँ 

                             ------- मुक्ता भावसार 
           

No comments:

Post a Comment