Sunday, 27 November 2016

सब पूछते हैं मुझसे तुम कौन हो - मुक्ता

किसी ने पूछातुम्हारी कविताओं में 'तुमकौन है ?
मैंने कहा जो 'तुमको 'हममें तब्दील ना कर सका
जिसकी ज़िन्दगी में, 'मैंहमेशा गुमनाम रही
कैसे बता देती कि कौन है वो ?
उसका  नाम लिया तो हंगामा मच जाएगा
बहुत नाम वाला है वो खामखा बदनाम हो जाएगा
नाममानसम्मान और पहचान से बड़ा प्यार कब हुआ है
उसने ज़िन्दगी में नाम कमाया
हर ख्वाब को सच कर दिखाया
हर नामुमकिन मुकाम को पाया
पर सुना है अब वो तन्हा है
काश 'मैं और तुमहम हो पाते
वो भी यही सोचता है
पर काश मुमकिन कब हुए

जो बिछड़े वो फिर कब मिले है |

                                ----- मुक्ता भावसार

Wednesday, 23 November 2016

Dear Zindagi - मुक्ता

डिअर, ज़िन्दगी तुम्हारे जाने के बाद
शायद उतनी डिअर ना रहे
पर फिर भी में खुश हूँ  
मैंने  अपने सारे वादे निभाएं और 
तुमने ज़िन्दगी को डिअर कहने की कई वजह दी
तुम्हारा साथ
हमारी हर मुलाकात 
टूट कर एक दूसरे को चाहना
रूठना और मनाना
छोड़ कर चले जाना
और हर बार लौट कर आना
यकीनन हम अब साथ नहीं
लेकिन तुम मेरे लिए हमेशा डिअर रहोगे

और हां हमेशा मेरी ज़िन्दगी भी|
      
                   ----- मुक्ता भावसार 

Friday, 18 November 2016

फैसला तुम्हारा ज़िन्दगी मेरी - मुक्ता

साथ निभाना भी तुम्हारे हाथ में है
छोड़ कर जाना भी तुम्हारे हाथ में है
मेरे भरोसे को गलती बनाना भी तुम्हारे हाथ में है
ज़िन्दगी को बस तेरे फैसले का इंतजार है
लौट कर आना भी मंजूर
छोड़ कर जाना भी स्वीकार है
मेरे भरोसे को गलती बनाना भी तुम्हारे हाथ में है
ज़िन्दगी हंसी जब हाथों में तुम्हारा हाथ
सफर सुहाना जब मिले तुम्हारा साथ
चेहरे की मुस्कुराहट और आंखों की नमी भी तुम्हारे हाथ में है
तुम्हारी हिम्मत मेरी किस्मत
हिम्मत दिखाना भी तुम्हारे हाथ में
हार जाना भी तुम्हारे हाथ में है
मेरे भरोसे को गलती बनाना भी तुम्हारे हाथ में है

                                       -----मुक्ता भावसार 

Friday, 11 November 2016

आओ दूरियाँ कम कर लें - मुक्ता

क्या हम कल की बेचैनी में आज को खो देना चाहते है ?
आंसुओं के डर से क्या कल की ख़ुशी नहीं चाहते है ?
इन दूरियों का डर मुझे भी है
तुमसे मिलने की तड़पन मुझे भी है
पर क्या हम आज की बेबसी में कल बेहतर ज़िन्दगी नहीं चाहते
इतने सस्ते तो नहीं है ये इश्क़ के वादें
जो महज फासलों में बिक जाएं
उम्र भर के हमसफ़र है हम
फिर कैसे इन दूरियों से ठहर जाएं
ये दूरियां मुझे भी चिढ़ाती है
ये मजबूरियां मुझे भी सताती है
लेकिन आज साथ ना होने के डर से
उम्र भर ना मिलने की चाह कैसे ख़त्म हो जाएं ?
ये सांसे कैसे तेरे बिना ताउम्र जीएं
क्यों इश्क़ के हमारे सफर को मंजिल ना मिले
क्यों मेरा नाम अधूरा रहे
कहो क्यों हमारा प्यार अधूरा रहे
क्यों मुझमें तुम नजर ना आओ
क्यों मैं सिर्फ ''मैं'' रहूँ
क्यों में और तुम हम ना बने
चलो ना बेहतर कल के आज थोड़ी दूरियां सह ले |

                                  ---- मुक्ता भावसार