और एक दिन अचानक उसकी कमी खलनी बंद हो जाती है, जिसके बिना जीना कभी मुश्किल सा लगता था। हमारी हर कमी को जिसका होना ही पूरा कर सकता था, उस कमी को भी भूल चुके होते हैं।
सब शांत हो जाता है। शांति भी वो सन्नाटे वाली, जैसे तेज़ बारिश, आँधी-तूफ़ान के बाद कोई नदी अपनी मधम चाल से धीरे-धीरे कल-कल करती चली जाए वैसे। कोई शिकायत कोई ग़ुस्सा, कुछ भी महसूस नही होता। हम समझने लग जाते हैं कि सब Normal हो गया है, हम Move on कर चुके है।
Bam.!! फिर आप किसी दिन कहीं जा रहे होते हो, किसी गली-नूक्कड़ से गुज़र रहें होते हैं और अचानक बैक्ग्राउंड में कोई, वो आपका सबसे फ़ेवरेट वाला रोमांटिक song
play कर देता है, जिसको आप अपने प्लेलिस्ट से डिलीट कर चुके होते हैं। वो गाना जिसे कभी आपके लिए, उसके होने का मतलब था, वो गाना जिसे गुनगुना भर लेने से आप ख़ुद को उसके आग़ोश में महसूस करते थे। उसका पहला dedication
आपके लिए या आपका पहला dedication
उसके लिए।
बस, वहीं सारे move on और i am
over with that shit का सत्यानाश हो जाता है। वो सारे लम्हे जिन्हें आप बमुश्किल कहीं छोड़ आयें होते हैं, आ कर फिर से लिपट जाते हैं। आँखों की नमी जो कई रात जाग कर आपने सुखाया होता है, फिर से अपनी जगह लौट आता है।
नही, ये दिल की नाइंसाफ़ी नही तो और क्या है। वो ज़ख़्म जिन्हें भरने में साल लग जाते हैं, कैसे किसी एक गाने की लाइन सुन कर दिल वापिस वहीं लौटने को करने लगता है। दिल का वैसे भी क्या जाता है, मुश्किल तो हमारी बढ़ जाती है न। हद है।
वैसे ये लिखने की कोई ख़ास वजह नही है। ख़ाली सुबह में सुन लिए थे उठते के साथ, कुमार सानू जी की आवाज़ में,
"पहला ये पहला प्यार तेरा मेरा सोनी
पहली ये मुलाक़ात है.!!"
बस कल्याण हो गया, तभी से।
बेईमान है ये दिल।❤️
--- अनु रॉय